यहां देवी-देवताओं ने भी बैठाए हैं अपने लिए पहरेदार

Monday, Jun 18, 2018 - 02:05 PM (IST)

कुल्लू (शम्भू प्रकाश): लाख कोशिशों के बावजूद जब कोई कार्य विशेष मनुष्य के वश से बाहर हो जाए तो अंतत: उसके मुंह से यही शब्द निकलते हैं कि प्रभु अब आप ही देख लो। अक्सर काल की अत्यंत प्रभावी स्थिति में भी लोग प्रभु को याद करते हैं। कोई त्रिदेव, कोई नवदुर्गा तो कोई अपने कुलदेव या ईष्ट देव से ऐसे समय में कार्य सिद्धि के लिए प्रार्थना करता है जब वह पूरी तरह से हार जाए या हारने की स्थिति में हो। असंभव को संभव में भी बदलते हुए देखा गया है। देव संस्कृति एक ऐसा विषय है जिस पर कई शोधार्थी शोध कर गए लेकिन अंत न पा सके। 


रामायण, महाभारत के दौरान की गई कथाओं में हिमालय का जिक्र है। पांडवों ने वनवास का दौर मनाली में बिताया और इसी दौरान कुंती पुत्र भीम ने देवी हिडिम्बा से विवाह किया और घटोत्कच्छ के रूप में उन्हें पुत्र भी प्राप्त हुआ। महाभारत के युद्ध में वीर घटोत्कच्छ को भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर बुलाया गया और वे काम आए। सतयुग, द्वापर युग व त्रेता युग में देवी-देवता, ऋषि-मुनि जहां-जहां तप करने के लिए रहे वे जगहें आज मंदिरों व अन्य देव स्थलों के रूप में मौजूद हैं। उस दौर में भी सुरक्षा घेरा बनाया जाता था जिसके भी आज निशान मिलते हैं। किसी मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले संबंधित देवी-देवता या ऋषि-मुनि तक पहुंचने के लिए पहले उनके पहरेदारों की निगाहों से गुजरना होता था। 


इसका उदाहरण देते हुए बुजुर्ग बताते हैं कि  सचाणी गांव में देवी अंबिका का भव्य मंदिर है और पनारसा के पास देवी के पहरेदार के रूप में एक दानव का ठिकाना रहा जो आज भी विराजमान है। देवी की कृपा से दानव ने स्वयं को पहरेदार बनाया और आज पहरेदार की भूमिका निभाने वाले दानव की भी लोग पूजा कर रहे हैं। इसी प्रकार कुल्लू, मंडी सहित प्रदेश की वादियों में जगह-जगह छोटे-छोटे मंदिर देखे जा सकते हैं। ये मंदिर इनसे कई मील दूर स्थित किसी न किसी देवी या देवता के स्थान से जुड़े हुए हैं। 


यहां की प्रार्थना गूंजती है मूल स्थान तक
कुल्लू के बुजुर्गों दोत राम, हरि सिंह नेगी, लाल चंद शर्मा, मनी राम ठाकुर व जीवन दास आदि कहते हैं कि देवी-देवता के मूल स्थान से कुछ दूर यदि कोई छोटा मंदिर हो तो वह किसी अन्य देवी-देवता का भी हो सकता है। ऐसे कई मंदिर पहरेदार के रूप में मौजूद किसी दानव या किसी देवगण का हो सकता है। मंदिर की ओर बढ़ रहे किसी के बारे सूचना हजारों वर्ष पूर्व भी इन्हीं पहरेदारों के माध्यम से पहले पहुंचाई जाती थी। आज भी इन पहरेदारों के माध्यम से लोग किसी देवी-देवता के मूल स्थान तक अपनी प्रार्थना पहुंचा सकते हैं। हजारों वर्ष पूर्व भी देवी-देवताओं का पहरेदारों से संवाद होता होगा। 


हर जगह किसी न किसी का आधिपत्य
ऐसे नाले, पहाड़ व स्थान मौजूद हैं जहां किसी न किसी का कभी आधिपत्य रहा है। इन स्थानों के अधिपति रहे देवी-देवताओं और दानवों को आज भी भोजन दिया जाता है। आज भी यदि कोई बारात गुजर रही हो या कोई धार्मिक यात्रा हो तो भी इन जगहों पर इन स्थानों के अधिपति को आटा, चावल या अन्य अनाज भोजन के रूप में अर्पित किए जाते हैं ताकि संबंधित कार्य के दौरान किसी को संबंधित स्थान के अधिपति कोई क्षति न पहुंचाएं। 

Ekta