यहां सजती है देवी-देवताओं की संसद, मधुमक्खी का रूप धारण कर काटी थी शिला (PICS)

Sunday, Sep 09, 2018 - 01:49 PM (IST)

कुल्लू (मनमिंदर): हिमाचल प्रदेश में एक ऐसी धर्म संसद है जिसमें इंसानों के साथ-साथ देवताओं के मामले भी निपटाए जाते हैं। स्थानीय निवासी इस संसद को जगती पट कहते हैं। जगती यानी के न्याय तथा पट यानी के मूर्ति है। जिला कुल्लू के ऐतिहासिक गांव नग्गर कैसल में प्राचीन काल से समस्त देवी-देवताओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। जहां पर देव कार्य से संबंधित प्रत्येक निर्णय लिए जाते हैं। जगती पट पर लिया गया निर्णय सभी इनके लिए आखिरी निर्णय होता है क्योंकि यह स्थान सभी देवी-देवताओं द्वारा प्राचीन काल में स्थापित किया गया था। 


देवी-देवताओं ने मधुमक्खी का रूप धारण कर काटी थी शिला
ऐसा माना जाता है कि समस्त देवी-देवताओं ने मधुमक्खी का रूप धारण कर इस शिला को बाहंग के पास स्थित द्राम डांग से काट कर नग्गर में स्थापित किया था। बहुत से फैसले ऐसे होते थे जिसे एक अकेला देवता या आदमी निपटा नहीं सकता था। इसलिए इस स्थान की स्थापना की गई। समय-समय पर इस स्थान पर सभी देवी-देवताओं की धर्म संसद लगती है और समाज से संबंधित हर तरह का निर्णय इस स्थान पर लिया जाता है। इसलिए इस स्थान को देवताओं की अदालत कहा जाता है जोकि निरंतर हजारों सालों से चली आ रही है। 


बलि प्रथा को लेकर लिए गए थे फैसले
साल 2013-14 के समय में स्की विलेज से संबंधित और बलि प्रथा को लेकर भी इस स्थान पर सभी देवी-देवताओं ने मिलकर धर्म संसद का आयोजन किया था और फैसले लिए गए थे। कुल्लू के समस्त जनमानस ने माना था कि आज इस जगती पट पर लोगों के आपसी विवादों पर निपटारा होता है।


अलौकिक शिला की रीति-रिवाजों से होती पूजा
इस मंदिर में स्थापित अलौकिक शिला की आज भी धार्मिक रीति-रिवाजों से पूजा होती है। स्थानीय निवासी सुरेश आचार्य ने बताया कि जगती पट स्थान सभी देवी-देवताओं के साथ-साथ कुल्लू निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण पवित्र स्थान है। प्राचीन समय से कई महत्वपूर्ण फैसले इस स्थान पर लिए गए है और आज भी इस स्थान की श्रद्धा वैसे ही बरकार है।


भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार एवं पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने बताया कि जगती पट्ट में जगती बुलाने का अधिकार उनके ही परिवार को हे और घाटी में जब भी कोई आपदा आने वाली हो तो देवी देवता मिलकर उसका निपटारा करते है। आज भी लोगों की जगती पट्ट पर काफी श्रद्धा है और विपत्ति के समय लोग जगती पट्ट में ही उससे निपटने की प्रार्थना करते है।

Ekta