मरने के बाद फिर जिंदा हो गया वो, ऐतिहासिक पल के हजारों लोग बने गवाह

Sunday, Jul 22, 2018 - 07:52 PM (IST)

कुल्लू: जिला कुल्लू की लगघाटी में एक बार फिर देव आस्था की जीत हुई और देव शक्ति द्वारा मारा गया नड़ एक बार फिर जिंदा हो गया, वहीं इस दौरान देवताओं द्वारा अपनी शक्ति से बुरी आत्माओं का भी खात्मा किया गया और देव उत्सव में उपस्थित हजारों लोगों को अपना आशीर्वाद दिया गया। जिला कुल्लू की लगघाटी के ग्रामंग गांव में 40 साल बाद काहिका उत्सव मनाया गया, जिसमें देवता पंचाली नारायण, देवता वीरनाथ ने अपने सैंकड़ों हारियानों संग भाग लिया। दोनों देवताओं द्वारा पहले ग्रामंग स्थित मंदिर में देव प्रक्रिया को पूरा किया गया और देव विधि द्वारा काहिका की परंपरा को निभाया गया।


नड़ ने श्रद्धालुओं पर पर फैंका जौ का आटा
शाम 6 बजे के बाद काहिका में नड़ को मारने की प्रक्रिया शुरू हुई। काहिका उत्सव के आकर्षण नड़ कालू द्वारा मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं पर जौ का आटा फैंका गया और उसके बाद काहिका की विधि को पूरा किया गया। देवता के कारदार द्वारा नड़ को तीर मारा गया और नड़ अचानक से मूर्छित हो गया। उसके बाद देव हारियानों द्वारा नड़ को उठाकर मंदिर के चारों ओर 3 चक्कर लगाए गए। तीसरी परिक्रमा पूरी करने के बाद ढोल-नगाड़ों व नरसिंगों की ध्वनियों के बीच देव शक्ति के प्रभाव से नड़ जीवित हो उठा। इसके बाद देवताओं की जय-जयकार से पूरा गांव गूंज उठा। नड़ के जिंदा होते ही श्रद्धालुओं ने देवताओं की जयकार की ओर फिर देवता से वर्ष भर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद ग्रहण किया।


राक्षसों का अंत करने लिए देवताओं ने दी काहिका मनाने की सलाह
देवता के कारदार रेवत राम ने बताया कि पुराने समय में इस क्षेत्र में राक्षसों का आतंक हुआ करता था। राक्षसों का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने काहिका पर्व मनाने की सलाह दी और उसके बाद से लेकर समय-समय पर काहिका पर्व का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि अगर काहिका पर्व के दौरान देवता नड़ को जिंदा नहीं कर पाता है तो श्रद्धालुओं के सामने देवता का रथ जला देते हैं और देवता की सारी सम्पत्ति नड़ की पत्नी को सौंप दी जाती है।


यहां मनाया जाता है काहिका उत्सव
कुल्लू में काहिका उत्सव तारापुर, भल्याणी, मथाण, धारला, लरणकेलों, यार, भेखली, पुईद, शिरड, बशौणा, दरपोईंण, छमाहण, नरोगी, हवाई, त्यून, धारा, तादला, काईस, रुमसु व सोयल आदि में मनाया जाता है।


अलग-अलग तरीके से मारा जाता है नड़
देवभूमि कुल्लू में नड़ मारने की प्रक्रिया हर स्थान पर अलग-अलग है। शिरड़ तथा दरपोइन आदि जगहों पर तीर चला कर नड़ को मारा जाता है, वहीं भेखली में मंत्रों से तथा बशौणा में चरणामृत पिलाकर नड़ को मारा जाता है। कई लोग नड़ को मारने के बाद उसे सुई चुभा कर या चुटकी काट कर मारा जाता है लेकिन नड़ की मृत्यु को पूर्ण मानते हैं।


ऐसे शुरू हुआ काहिका उत्सव
काहिका की शुरूआत हजारों साल पहले ऊझी घाटी स्थित शिरड में हुई। नाग देवता साधु के रूप में आ रहा था तो उसे रास्ते में साधु के रूप में नड़ मिल गया। साधु के रूप में नाग देवता स्थानीय ठाकुर के पास जाकर आटा मांगने लगा और नड़ को नमक आदि पीसने के कार्य में लगा दिया। ठाकुरों ने उसे आटा नहीं दिया और उसका अपमान कर दिया। उसके बाद साधु हिमरी की ओर चला गया वहां पर जाकर भारी बारिश देकर बाढ़ द्वारा ठाकुरों का नाश कर दिया। साधु जब वापस आया तो देखा कि नड़ भूख से मर गया है। देवता ने अपने आप को उसकी मौत के लिए अपराधी माना और काहिका के रूप में पश्चताप किया। हर काहिका में नड़ की पुनरावृत्ति की जाती है और देवता इस घटना का वर्णन गुर के माध्यम से करता है। तब से लेकर हर वर्ष काहिका में नड़ को मारने के बाद जीवित करने की देव परंपरा निभाई जाती है।

Vijay