हमीरपुर संसदीय सीट: खुद की अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस, BJP में भी तैयार हो रहा नया ध्रुव

Wednesday, Nov 21, 2018 - 11:19 AM (IST)

हमीरपुर (पुनीत): लोकसभा चुनाव के अब अंतिम चुनावी माह खत्म होने वाले हैं, जिसके चलते राजनीतिक दलों ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। कांटे के इस मुकाबले में इस बार हमीरपुर संसदीय सीट पर भी विधानसभा चुनाव के बाद नए सियासी समीकरण उभरकर सामने आए हैं। इसी संसदीय क्षेत्र ने इस बार प्रदेश की सियासत में बड़ा फेरबदल किया था, जिसके बाद जयराम ठाकुर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अब लोकसभा चुनाव में इस सीट पर फिर एक-दूसरे को मात देने के लिए तैयारियां शुरू हुई हैं, लेकिन कहीं अपनों की तकरार तो कहीं अंदरूनी मार ने बड़े-बड़े नेताओं की भी नींद उड़ा दी है। 

कहने को मुकाबला विरोधियों से होना है, लेकिन उससे पहले अपनों की लड़ाई से पार निकलने की चुनौती भी बनी हुई है। या यूं कहें कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दल इस समय गुटबाजी के दौर से गुजर रहे हैं तो भी गलत नहीं। गुटबाजी इस कद्र घर कर गई है कि बाहर से चाहे जितना मर्जी दिखावा कर लें लेकिन गाहे-बगाहे एक गुट दूसरे को टंगड़ी मारने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पार पाना किसी भी राजनीतिक दल के किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि कांग्रेस जहां अपनी ही लड़ाई में ज्यादा व्यस्त है, वहीं अंदरूनी रार से गुजर रही भाजपा भी नए दौर से गुजर रही है। 

समीकरण बदले, निष्ठा बदलने वाले भी अब नई नाव में बैठने को आतुर
जिला हमीरपुर में कांग्रेस अपनी लड़ाई में ज्यादा व्यस्त है तो भाजपा में अंदरूनी रार गहरी हो रही है। सुजानपुर में ही इन दिनों ब्लाक कांग्रेस व स्थानीय कांग्रेसी विधायक राजेंद्र राणा की संस्था आमने-सामने हैं। कमोवेश पूरे जिला में ही कांग्रेस की ऐसी स्थिति है। वहीं भाजपा में भी इस बार समीकरण बदले हैं, जहां जयराम गुट अलग से सक्रिय हो गया है। भोरंज में पूर्व विधायक अनिल धीमान को सरकार में अहम औहदा न मिलने से स्थानीय संगठन नाराज है तो बड़सर में ही 2-3 धु्रवों में भाजपा बंटी हुई है। हालांकि जिला से भाजपा में प्रेम कुमार धूमल जैसा बड़ा नाम भी है तथा उनके इर्दगिर्द ही भाजपा की सियासत चलती रही है लेकिन इस बार समीकरण ऐसे बदले हैं, जिससे निष्ठा जताने वाले भी अब नई नाव में बैठने को आतुर हैं। 

कांग्रेस में बड़ा कौन, भाजपा को परेशानी में न डाल दे नाराज कुनबा 
जिला बिलासपुर में 4 विस क्षेत्र श्रीनयना देवी, बिलासपुर, घुमारवीं व झंडूता हैं। बिलासपुर सदर में इन दिनों मंडी समिति में नियुक्तियों पर बवाल खड़ा हुआ है, जहां अब तक चेयरमैन की तैनाती नहीं हो पाई है। पूरे 5 साल विरोधियों की नाक में दम करने वाला धड़ा अब अपनी ही सरकार के विधायक की कार्यप्रणाली से अंदर से खफा है, क्योंकि मंडी समिति में संगठन के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने के अप्रत्यक्ष आरोप विधायक पर लग रहे हैं। जिला में पूर्व सांसद सुरेश चंदेल की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है तो झंडूता से पूर्व विस उपाध्यक्ष रिखी राम कौंडवीं भी अभी मौन हैं। उधर, जिला में कांग्रेस भी गुटबाजी में कम नहीं है। पूर्व मंत्री राम लाल ठाकुर और पूर्व सदर विधायक बंबर ठाकुर का छत्तीस का आंकड़ा पहले ही जगजाहिर है तो बंबर ठाकुर के साथ संगठन की तकरार भी सामने आती रहती है। 

एक गुमनाम पत्र भी चर्चा में
अब लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो लाजिमी है कि पत्र बम की राजनीति भी होगी। ऐसा ही एक गुमनाम पत्र इन दिनों चर्चा में आया है। हालांकि इसकी सत्यता क्या है, इससे पर्दा नहीं उठ पाया है लेकिन जिस तरह से पत्र में सीमैंट के दामों को लेकर सरकार की छवि को बिगाडऩे की कोशिश की गई है, उससे स्पष्ट हो रहा है कि वर्चस्व की जंग में तकरार कितनी गहरी है। 

अब तक नजरअंदाज हैं ये चेहरे
भाजपा में इस संसदीय क्षेत्र से ऐसे भी नामचीन चेहरे हैं, जिन्हें सरकार में कोई अहम जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है, जिससे उनके कार्यक्रता भी मायूस हैं। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती, प्रदेश प्रवक्ता रणधीर शर्मा, पूर्व सांसद सुरेश चंदेल, भोरंज से पूर्व विधायक डा. अनिल धीमान, पूर्व विस उपाध्यक्ष रिखी राम कौंडल, युवा नेता नरेंद्र अत्री व विक्रम शर्मा सहित ऐसे नाम हैं, जिनको सरकार में जगह नहीं मिल पाई है।

उम्मीदवारी पर ही संशय में कांग्रेस 
यह सीट कांग्रेस के एक्सपैरिमैंट के लिए मशहूर हो चुकी है, क्योंकि पिछले 2 चुनावों में यहां कांग्रेस अपने उम्मीदवार के लिए भाजपा पर ही आश्रित रही है। कांग्रेस के बड़े चेहरे इस सीट से चुनाव लड़ने का खतरा मोल नहीं लेते और कोई चेहरा ऐसा सामने आता नहीं है, जिस पर पार्टी भरोसा कर पाए। ऊहापोह की इस स्थिति में इस बार भी भाजपा के सुरेश चंदेल के कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ने की अटकलें जोरों पर हैं। 

वर्चस्व की जंग से असमंजस में कार्यकर्ता 
मंडी जिला के संधोल में भाजपा और कांग्रेस की गुटबाजी भी चरम सीमा पर है। भाजपा के कद्दावर नेता एवं मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर और भाजपा के युवा नेता नरेंद्र अत्री की संधोल में वर्चस्व की जंग अभी भी जारी है। उधर, कांग्रेस के चंद्रशेखर व पूर्व मंत्री नत्था सिंह के पुत्र नरेंद्र ठाकुर की गुटबाजी से कांग्रेस भी सालों से नफे में नहीं है। दोनों राजनीतिक दलों की गुटबाजी में एक बात सांझा है कि इस गुटबाजी से दोनों दलों के कार्यकर्ता असमंजस में हैं।

यहां म्यान से निकली रहती हैं तलवारें
जिला ऊना में भी गुटबाजी में फंसे दलों की तलवारें हमेशा म्यान से निकली रहती हैं, लेकिन इसके बावजूद दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर वार करने से भी नहीं चूकते।  

यहां दोनों विधायक आमने-सामने
देहरा के आजाद विधायक होशियार सिंह ने सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोला हुआ है। सीमैंट दामों पर होशियार सिंह और जसवां-परागपुर के विधायक एवं उद्योग मंत्री विक्रम सिंह की तकरार प्रदेश भर में चर्चा का विषय बनी हुई थी। कांग्रेस भी इन क्षेत्रों में अपने वजूद को तरस रही है जिसकी अपनी ही गुटबाजी खत्म नहीं हो पा रही है। 

Ekta