गोगा जाहरवीर ने महायुद्ध में धड़ से अलग कर दिए थे अर्जुन और सुर्जन के सिर
punjabkesari.in Saturday, Aug 28, 2021 - 08:44 PM (IST)

डाडासीबा (सुनील): अर्जुन सुर्जन जान से मारे, अनंगपाल ने शस्त्र डारे। चरण पकड़ कर पिंड छुड़ाया, सिंह भवन माड़ी बनवाया। महाराणा गुग्गा चौहान के विवाह से अनेक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। महायोगी गुरु गोरखनाथ के चमत्कारों और गुग्गा की शक्ति व प्रभुत्व के आगे मालव देश के राजा को अपनी पुत्री श्रीयल का विवाह गुग्गा जी से करना पड़ा था। विवाह के तुरंत बाद ही काछला के दोनों पुत्र अर्जुन और सुर्जन गुग्गा जी से आधे राज्य की मांग करने लगे। हालांकि वे गुग्गा वीर के मौसरे भाई थे। इन दोनों ने दिल्ली के राजा अनंगपाल से मिलकर बागड़ देश को चारों ओर से घेर लिया। यह बात गुग्गा जी को क्रोध आया और निकल पड़े 5 कपड़े और 5 हथियार उठाकर पापियों का नाश करने।
कहा जाता है कि जाहरवीर के नीले घोड़े की टापों की आवाज पाताल लोक तक पहुंच गई। जाहरवीर जोधा का नीला घोड़ा इन राक्षसों को घेरकर खड़ा हो गया। दोनों ओर से जबरदस्त युद्ध छिड़ गया। मुगलों का 9 लाख घोड़ा और 9 लाख सवार गुग्गा चौहान ने मार गिराया। काली मां ने भी युद्ध में गोगा जी का साथ दिया। बरछे का एक प्रहार सुर्जन की गर्दन पर लगा और उसका सिर धड़ से अलग हो गया। थोड़ी देर युद्ध करने के बाद अर्जुन का शीश भी गुग्गा वीर ने धड़ से अलग कर दिया। सिर्फ इससे ही गुग्गा जी का क्रोध शांत नहीं हुआ। जाहरवीर ने दोनों भाईयों अर्जुन व सर्जुन के कटे हुए सिरों को अपने भाले की नोक पर लटका लिया और महल में लौट आए। इस बात से क्रोधित होकर माता वाछल ने गुग्गा जी को देश निकाले का हुक्म सुना दिया।
गुग्गावीर ने अपने घोड़े को दौड़ाया तथा धरती मां से प्रार्थना कर कहा कि वह उसे अपने में समा लेने दें। धरती मां ने गुग्गा जी को अपने गर्भ में समाहित कर लिया। यह खबर सुनते ही गुग्गा जी की पत्नी श्रीयल शोक सागर में डूब गई। श्रीयल के विलाप उपरान्त आकाशीय बिजली ने बताया कि गुगमल चौहान जीवित हैं और पाताल लोक में ख्वाजा पीर के साथ हार-पासा खेल रहे हैं। अपने सतित्व के बल पर श्रीयल ने शिव सिहांसन को हिला दिया। भगवान शिव ने गुरु गोरख नाथ को श्रीयल की सहायतार्थ भेजा। गुरु गोरख नाथ के विवश करने पर गुग्गा रोज श्रीयल से रात को मिलने आने लगे। श्रीयल अब फिर से सुहागिनों जैसे श्रृंगार करने लगी। माता बाछल के बार-बार पूछने पर श्रीयल ने सारा भेद खोल दिया।
श्रीयल ने कहा कि वह रात को गाय के गोबर का चौका लगाती है और चौका सूखने के बाद गुग्गा जी वापस चले जाते हैं। एक दिन बाछल के कहने पर श्रीयल ने चौके पर तेल का लेप चढ़ा दिया ताकि चौका सूखने न पाए। सुबह होने तक चौका नहीं सूखा और माता बाछल ने गुग्गा जी को देख लिया और वापस जाने से रोकने लगी। कहा जाता है कि गुग्गा जी ने अपने गले की माला तोड़कर जमीन पर फैंक दी। जैसे ही माता बाछल उसे उठाने नीचे झुकी, तब तक गुग्गा जी हमेशा के लिए बिछड़ चुके थे। यही कारण है कि गुग्गा जी वर्ष में सिर्फ 9 दिन ही बाहर निकलते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।