गिरि पेयजल योजना पर गरमाई सियासत, गड़बड़ी की जांच को मिला सभी दलों का साथ

Tuesday, Apr 11, 2017 - 10:30 AM (IST)

शिमला: गिरि नदी की उठाऊ पेयजल योजना में कथित गड़बड़ी की जांच को अब सभी दलों का साथ मिल गया है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी विचारधारा के बंधन से ऊपर उठकर एक स्वर में पानी और पैसे की बड़े पैमाने पर हुई बर्बादी पर जोरदार प्रहार कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार अभी भी खामोश है। सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह इस मुद्दे पर क्या कहे? उधर, विजीलैंस एंड एंटी क्रप्शन ब्यूरो भी पूरी तरह से एक्शन में आ गए हैं। राजधानी शिमला अंग्रेजों के वक्त का बसाया ऐतिहासिक शहर है। इसे बसाया तो मात्र 25 की आबादी के लिए था, पर आज शिमला की जनसंख्या करीब अढ़ाई लाख हो गई है और देश-विदेश के पर्यटक आते हैं, सो अलग। इसके अलावा यहां की विख्यात शैक्षणिक संस्थाओं में रोजाना बड़ी संख्या में छात्र आते हैं। शहर का लगातार विस्तार हो रहा है। निर्माण कार्य में निरंतर इजाफा हो रहा है। इन सबके लिए पानी बुनियादी जरूरत है। 


गर्मी के हर मौसम में पानी के लिए मचता रहा हाहाकार 
वर्ष 2008 से अब तक यहां पानी के लिए गर्मी के हर मौसम में हाहाकार मचता रहा है। बरसात में गाद की समस्या से जूझना पड़ता है। सर्दियों में कड़ाके की ठंड से पानी की पाइपें जाम हो जाती हैं। ऐसे हालत में अगर कहीं पानी की बर्बादी हो तो फिर क्या कहेंगे? क्या सरकार और सरकारी महकमे की लापरवाही नहीं कहेंगे? यह सवाल आजकल गिरि नदी की उठाऊ पेयजल योजना पर खड़ा हो रहा है। इसमें 8 साल तक पानी और पैसे दोनों की व्यापक पैमाने पर बर्बादी हुई लेकिन न सरकारें जागीं और न ही सरकारी तंत्र। अब इस स्कीम की सच्चाई से पर्दा उठ रहा है। दोहरी जांच रंग ला रही है। पहले नगर निगम के ग्रेट शिमला वाटर एंड सैनिटेशन सर्कल जैसे ही गठित हुआ, वैसे ही पानी की बर्बादी के कारणों को खोजने का कार्य आरंभ हो गया। 


राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भी शिकायत भेजी
खोजते-खोजते आई.पी.एच. विभाग की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। एस.ई. रैंक के आलाधिकारी ने जांच में खासा दिमाग खपाया। उन्हें तकनीकी पहलुओं की भी गहन समझ है, इसलिए उनके कामकाज पर सवाल उठाने से पहले कोई भी सौ बार सोचेगा। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि 8 सालों के भीतर उक्त योजना में करीब 50 करोड़ रुपए के पानी की बर्बादी हुई है, वहीं जनता को पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ा, वह अलग। इस रिपोर्ट से नगर निगम के हुक्मरानों के भी होश फाख्ता हो गए हैं। उन्होंने तय किया कि इस सरकार से जांच करवाई जाए। पिछले वर्ष इस सिलसिले में मेयर संजय चौहान ने सीधे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को पत्र लिखा लेकिन नौकरशाही इस पर पूरी तरह से कुंडली मार कर बैठ गई। दोबारा पत्र लिखा, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई। बाद में किसी और व्यक्ति ने विजीलैंस को शिकायत की। उन्होंने राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भी शिकायत भेजी। 


पानी की बर्बादी होने के कई सबूत मिले
सरकार इस पर भी हरकत में नहीं आई लेकिन राजभवन ने सरकार को पूरे मामले की जांच करवाने के निर्देश दिए। पंजाब केसरी ने पूरे मामले को सिलसिलेवार प्रमुखता से उठाया। इससे विजीलैंस भी एक्शन में आ गई। विजीलैंस एंड एंटी क्रप्शन ब्यूरो की कुछ दिन पहले ही जांच के लिए एक टीम मौके पर पहुंची। यह टीम शिमला से करीब 70 किलोमीटर दूर वहां पहुंची, जहां से गिरि नदी से पानी को शिमला के लिए लिफ्ट किया जाता है। वहां पर पुरानी पाइप लाइन के सैंपल एकत्र किए। ये पाइपें पूरी तरह से जंग खा गई हैं जबकि अभी इनकी उम्र 8 साल ही हुई है। वैसे इनकी उम्र 30 वर्ष होनी चाहिए थी। कम से कम आधी तो होती ही। विजीलैंस को मौके पर पानी की बर्बादी होने के कई सबूत मिले हैं। 


विजीलैंस जांच पर कांग्रेस को भरोसा
विजीलैंस जांच पर कांग्रेस को पूरा भरोसा है। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव नरेश चौहान का कहना है कि जांच से ही सच्चाई सामने आ सकती है। अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए लेकिन निर्दोष व्यक्ति को छेड़ा नहीं जाना चाहिए। उनका कहना है कि शिमला पानी के मायने अच्छी तरह से समझता है क्योंकि यहां हमेशा ही किल्लत रहती है। ऐसी स्थिति में अगर 8 वर्षों तक पानी की करोड़ों रुपए की बर्बादी होती रही, जो सबसे जुड़ा हुआ विषय है। कांग्रेस चाहेगी कि इसकी तह तक जांच हो लेकिन पानी के नाम पर सियासत बिल्कुल न हो। कांग्रेस पार्टी की सरकार पारदर्शिता में विश्वास रखती है। शिमला में पेयजल मुहैया करवाने की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से नगर निगम की है। इसके लिए सरकार ने अलग से सर्कल बनाया है लेकिन अभी भी पानी का संकट खत्म नहीं हुआ है। निगम को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी को निभाए। माकपा के मेयर और डिप्टी मेयर को 24 घंटे पानी उपलब्ध करवाने का वायदा पूरा करना चाहिए। अभी तक तो यह वादा अधूरा है।


मेयर और डिप्टी मेयर भी चाहते हैं निष्पक्ष जांच
मेयर संजय चौहान और डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर चाहते हैं कि योजना में बरती गई अनियमितताओं को लेकर जल्द प्राथमिकी दर्ज हो। उनका कहना है कि जांच से जनता के पैसों की गाढ़ी कमाई की बर्बादी का सच सबके सामने आ जाएगा। चौहान और पंवर का कहना है कि सरकार को भी जांच में सहयोग करना चाहिए। इन्होंने 3 दिन पहले ही योजना का निरीक्षण किया था। उन्होंने नई पाइप लाइन का भी मुआयना किया था। इस लाइन पर 4 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस पाइप लाइन से शिमला के लिए पेयजल आना आरंभ हो गया है। अब दूसरी पेयजल योजनाओं की भी मुरम्मत की जाएगी। यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर चलाया जाएगा।


गिरि पेयजल योजना की करवाएं जांच
भाजपा के प्रवक्ता महेंद्र धर्माणी का कहना है कि गिरि में अगर कोई गड़बड़ी हुई है तो सरकार को उसकी जांच करवानी चाहिए। विजीलैंस को चाहिए कि वह मामले की गहराई से जांच करें, तभी सच्चाई का पता चल सकेगा। वामपंथी मेयर और डिप्टी मेयर 5 साल तक जनता को सपने ही दिखाते रहे। जनता उनकी बातों पर यकीन नहीं करेगी लेकिन यह बात भी सही है कि अगर कोई योजना सही तरीके से लागू नहीं हुई, उसमें खोट रह गया होगा तो उसकी जांच जरूर होनी चाहिए। शिमला में पेयजल संकट के लिए मेयर और डिप्टी मेयर जिम्मेदार हैं। उन्होंने जनता से 24 घंटों में पेयजल मुहैया करवाने का वादा किया था लेकिन यह वादा झूठा ही साबित हुआ है।