किसानों की आय में होगी बढ़ोतरी, मक्का की तीन परंपरागत फसलें दिलवाएंगी रॉयल्टी

Thursday, Oct 24, 2019 - 10:40 AM (IST)

पालमपुर(भृगु) : कभी हाशिये पर रही मक्का के तीन परंपरागत फसलें अब किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेंगी। तीन मक्की की फसलों की गुणवत्ता के कारण न केवल इन्हें पेटेंट प्राप्त हुआ है अपितु अब इन फसलों के व्यावसायिक उपयोग पर होने वाले लाभांश का कुछ अंश किसानों को भी प्राप्त होगा। ऐसा कानूनी आधार पर करना ही होगा। यही नहीं यदि इन मक्की की तीन फसलों के गुणों को किसी अन्य फसल के समय स्थानांतरित किया जाता है तो नव विकसित उस फसल किस्म से होने वाले मुनाफे का हिस्सा भी किसानों को मिलेगा।

वर्षों से यह फसलें किसान उगा रहे थे परंतु ऐसा सीमित दायरे तक ही हो रहा था। जम्मू-कश्मीर से सटे चम्बा जनपद के सीमांत क्षेत्र में मात्र 600 एकड़ में ही इन तीन मक्का की फसलों की बिजाई किसानों द्वारा की जाती रही है। कुछ वर्ष पहले कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मक्का की इन तीन परंपरागत फसलों पर कार्य आरंभ किया तथा परिणाम न केवल उत्साहजनक निकले अपितु किसानों के लिए भी यह मुनाफे को सौदा बनने लगे हैं। मक्का की तीन परंपरागत किस्मों के संरक्षण के लिए चम्बा के किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त हुआ है। कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से इन 3 किस्मों के संरक्षण संवद्र्धन तथा पौध विविधता और किसान अधिकार प्राधिकरण के समक्ष इनका भी पंजीकरण करवाया गया है। 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा राज्य मंत्री कैलाश चौधरी द्वारा भादल पंचायत के किसानों तथा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर अशोक कुमार सरयाल को राष्ट्रीय पादप जीनोम संरक्षण सामुदायिक पुरस्कार सम्मान प्रदान किया गया। इस सम्मान में 10 लाख रुपए की धनराशि के अतिरिक्त स्मृति चिन्ह और प्रमाण पत्र भी प्राप्त हुआ है। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब इन फसलों की व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा देकर इससे जुड़े किसानों को रॉयल्टी का अधिकार प्राप्त होगा। 

ये हैं तीन किस्में

मक्का की तीन स्थानीय प्रजातियों हाची (सफेद), रिट्टी (लाल) और चितकुरी (पॉप कॉर्न) का मूल्यांकन किया गया तथा इन्हें प्रोटीन में बेहतर और सुक्रोज से भरपूर पाया गया। इसके आटे में न केवल अधिक मिठास पाई गई है अपितु यह कम तापमान व मई-जून में भी उग सकने वाली किस्में हैं। इन विशेष गुणवत्ता वाले लक्षणों के दृष्टिगत इन किस्मों को पौध विविधता और किसान अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा संरक्षित किया गया है। प्राधिकरण देश में विभिन्न महत्वपूर्ण फसलों की किस्मों और किस्मों को बनाए रखने और संरक्षित करने वाले किस्मों की पहचान करता है।

भादल क्षेत्र से संबंधित किसानों ने मक्का की इन तीन स्थानीय किस्मों का विकास और संरक्षण किया तथा कृषि वि.वि. के बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. जे.के. शर्मा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने विशेष गुणवत्ता गुणों के बीज का मूल्यांकन व पहचान की तथा इन किस्मों को विविधता और किसान अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली के साथ पंजीकरण करवाया। ऐसे में इन फसलों की गुणवत्ता को देखते हुए इन किस्मों की व्यापारिक खेती को बढ़ावा देकर रॉयल्टी का अधिकार किसानों को मिला है।

Edited By

Simpy Khanna