सुनो सरकार! आज भी गुमनामी के साये में जी रहा भारत-पाक युद्ध के हीरो का परिवार

Sunday, Aug 26, 2018 - 03:51 PM (IST)

दौलतपुर चौक (राजेश): 10-11 दिसम्बर की रात 1971 को भारत-पाक का युद्ध शुरू हुए एक सप्ताह हो चुका था। इस युद्ध में भारत की सेना पाकिस्तान के हर मोर्चे पर भारी पड़ रही थी। युद्ध में हमारे वीर सैनिकों ने दुश्मन सेना को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। 1971 में भारत-पाक युद्ध में 8 ग्रेनेडियर शकरगढ़  सैक्टर में तैनात थी। शकरगढ़ सैक्टर के चकडा नामक स्थान पर दुश्मन सेना ने अपना सुरक्षा तंत्र बेहद मजबूत किया हुआ था। यहां पाकिस्तानी हथियारबंद फौजी तैनात थे तथा 800 मीटर तक माइनें लगी हुईं थीं।

आसान काम नहीं था चकडा पर आक्रमण करना
चकडा पर आक्रमण करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन इसके बाबजूद 8 ग्रेनेडियर ने 10-11 दिसम्बर की रात चकड़ा पर आक्रमण कर दिया। अचानक हुए इस हमले से दुश्मन भौचक्का रह गया और उसका मनोबल टूट गया। इस हमले में सूबेदार सीता राम की प्लाटून सबसे आगे थी। दुश्मन की जवाबी कार्रवाई से भारत के कुछ जवान घायल हो गए मगर उनके हौसले बुलंद थे। सूबेदार सीता राम की प्लाटून ने भारी गोलाबारी के बीच जान की परवाह न करते हुए दुश्मन के मोर्चे पर कब्जा कर लिया। इसी दौरान सूबेदार सीता राम घायल हो गए।

घायल होने के बावजूद मोर्चे पर डटे रहे सीता राम
कंपनी कमांडर ने घायल सीता राम को उपचार के लिए पीछे भेजना चाहा लेकिन सीता राम ने इंकार कर दिया। भारतीय सैनिकों के जबरदस्त प्रहार से हर मोर्चे पर दुश्मन को मुंह की खानी पड़ी। इसी आक्रमण के दौरान सूबेदार सीता राम पुन: घायल हो गए और जख्मों की ताव न सहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए। वीरता की पराकाष्ठा पर पहुंच कर देश की खातिर बलिदान देने और बहादुरी के लिए शहीद सूबेदार सीता राम की पत्नी वीर नारी कृष्णा कुमारी को तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने वीर चक्र देकर सम्मानित किया। प्रदेशवासियों को इस महान सपूत सूबेदार सीता राम की शहादत पर गर्व है।

शहीद सूबेदार सीता राम टपरियाल का जीवन परिचय
सीता राम टपरियाल का जन्म जिला ऊना के अम्ब उपमंडल के अंतर्गत भद्रकाली गांव में 7 दिसम्बर, 1933 को हुआ। भद्रकाली गांव में ही शिक्षा प्राप्ति के उपरांत 18 वर्ष की आयु में सीता राम टपरियाल 7 दिसम्बर, 1951 को ग्रेनेडियर रैजीमैंट में भर्ती हो गए। रंगरूट ट्रेनिंग समाप्त करने के उपरांत सीता राम टपरियाल 8 ग्रेनेडियर में चले गए। उनका विवाह कृष्णा कुमारी से हुआ। सीता राम टपरियाल के 2 बेटे यशपाल सिंह, सतपाल सिंह और 2 बेटियां जीवन कांता व कमलेश राणा हैं। महज 38 वर्ष की अल्पायु में सूबेदार सीता राम टपरियाल सर्वोच्च बलिदान देकर देश के लिए कुर्बान हो गए।

कुछ नहीं हुआ शहीद की याद में
आज 1971 जंग के हीरो वीर चक्र शहीद सूबेदार सीता राम का परिवार गुमनामी के साये में है। किसी सड़क या किसी स्कूल का उनके नाम से नामकरण तो दूर किसी समारोह या किसी दिवस के अवसर पर भी शहीद की वीर नारी कृष्णा कुमारी को बुलाया तक नहीं जाता है। उनकी प्रतिमा, द्वार और सड़क का नामकरण करने की घोषणाएं महज घोषणाएं बन कर रह गईं। वीर नारी कृष्णा कुमारी को एक ही रंज है कि क्षेत्र में जब किसी बड़े कारनामे न करने वालों के नाम पर कई संस्थानों के नामकरण हो गए तो शहीदों के साथ ऐसा अन्याय क्यों हो रहा है।

आवाज उठाने पर टांग देते हैं एक बोर्ड
उन्होंने कहा कि 47 वर्षों में उनके शहीद पति की याद में किसी स्कूल या सड़कका नामकरण तो नहीं किया गया लेकिन जब वह आवाज उठाती हैं तो कुछ समय के लिए बिना किसी औपचारिकता से महज एक बोर्ड दौलतपुर-भद्रकाली मार्ग पर टांग दिया जाता है, मगर अब यह बोर्ड भी दशकों से गायब है। यह शहीद के परिवार से किसी भद्दे मजाक से कम नहीं है। शहीदों के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।

क्या कहता है जिला सैनिक कल्याण बोर्ड
जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के डिप्टी डायरैक्टर मेजर रघुवीर सिंह का कहना है कि इस मामले को प्रशासन के माध्यम से सरकार के समक्ष रखा जाएगा और नियमों के मुताबिक उचित कार्यवाही की जाएगी।

क्या कहता है लोक निर्माण विभाग
लोक निर्माण विभाग उपमंडल गगरेट के सहायक अभियंता बलदेव सिंह का कहना है की दौलतपुर-भद्रकाली सड़क मार्ग की किसी के नाम से नामकरण करने की कोई नोटिफिकेशन नहीं हुई है। साइन बोर्ड के बारे में संबंधित अधिकारी से रिपोर्ट ली जा रही है। इस सम्बन्ध में उचित कार्यवाही की जाएगी।

क्या कहते हैं विधायक
गगरेट के विधायक राजेश ठाकुर का कहना है कि शहीदों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता है। मामला ध्यान में है। शहीद परिवार के साथ वह हर पल कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं। इस मामले को लेकर वह स्वयं मुख्यमंत्री से मिलेंगे और जो भी संभव होगा वह किया जाएगा।

Vijay