आस्था का केंद्र बना विंध्यवासिनी मंदिर, भूस्खलन होने के बावजूद भी पहुंचते हैं श्रद्धालु

Monday, Sep 25, 2017 - 10:57 AM (IST)

पालमपुर (सुरेश): प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर धौलाधर के आंचल में 6900 फीट की ऊंचाई पर स्थित पुरानी माता विंध्यवासिनी मंदिर स्थल कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनता जा रहा है। हर वर्ष की तरह इस बार भी यहां शरदकालीन नवरात्रों को लेकर मंदिर परिसर में शतचंडी यज्ञ शुभारंभ किया गया, जहां नवरात्र संपन्न होने पर पूर्णाहुति डाली जाएगी। मंदिर कमेटी के सचिव संतोष कपूर का कहना है कि मंदिर मार्ग तक सड़क के लिए विधायक बृज बिहारी लाल बुटेल ने नाबार्ड से इसके लिए धन उपलब्ध करवा दिया है। इसके उपरांत यहां पहुंचना श्रद्धालुओं के लिए आसान हो जाएगा। सरकार इस स्थल को विकसित करे तो यह स्थल देश के धार्मिक पर्यटन स्थलों में जगह बना सकता है।



पुराना रास्ता है अति दुर्गम
कुछ साहसिक युवा भी इस धार्मिक स्थल पर पुराने पारंपरिक रूट से यहां पहुंचते हैं परंतु यह रास्ता अति दुर्गम है। मंदिर के प्रवेश द्वार के साथ ही एक सुरंग भी है, जो प्रोजैक्ट द्वारा बनाए गए डैम की तरफ ले जाती है, जहां जगह-जगह प्रकृति अपने अलौकिक दर्शन करवाती है। 


बंदला से 6 किलोमीटर है चढ़ाई
बंदला गांव से 6 किलोमीटर सीधी चढ़ाई से होते हुए कच्चे सड़क मार्ग द्वारा वहां पहुंचा जा सकता है। बिजली प्रोजैक्ट द्वारा निर्मित इस सड़क मार्ग से वहां वाहन पहुंचना हर चालक के बस की बात नहीं है। इस सड़क को बनाने में सैंकड़ों पेड़ों की बलि चढ़ी, परंतु उसकी जगह पौधारोपण नहीं हुआ। इसी कारण हर बरसात में जगह-जगह भूस्खलन होने से आवाजाही बंद हो जाती है। लेकिन फिर भी उत्साही श्रद्धालु मार्च से लेकर नवम्बर तक इस स्थल तक पहुंचते रहते हैं। 



जंगल के बीचों-बीच झरना करता है रोमांचित
नवम्बर से फरवरी तक यह स्थल बर्फ से ढका रहता है। जंगलों के बीच बहता एक झरना रोमांचित कर देता है। मंदिर के साथ में ही एक ऐसा झरना है, जिसकी ऊंचाई 800 मीटर नापी गई है, जो सीधा मंदिर से ठीक नीचे न्यूगल खड्ड में गिरता है, जिसे किंगछो झरने के नाम से जाना जाता। उस स्थान पर ऐसा आभास होता है मानों मनुष्य धरती से स्वर्गलोक में आ गया हो।