चुनावों में नेताओं को चुकानी पड़ती है कुर्सी गंवाकर कीमत

Thursday, Dec 21, 2017 - 10:07 AM (IST)

दौलतपुर चौक: सत्ता बदलते ही आस्था का चोला बदलने में माहिर लोग जरा भी देर नहीं लगाते हैं। हर क्षेत्र में मौकापरस्त और चापलूस लोगों का एक बड़ा कुनबा सिस्टम का भट्ठा बिठाने में अहम रोल अदा करता है। भले ही बहरूपियों की कीमत नेताओं को चुनावों में चुकानी पड़ती है लेकिन ऐसे लोगों के सदैव बारे न्यारे रहते हैं। यूं तो हर कोई सत्ता के करीब रहकर अपने मनमाफिक सपनों को संजोना चाहता है। समाज में अपना रौबदार रुतबा और दमदार छवि बनाए रखने के लिए हर कोई राजनेताओं से नजदीकियां बनाए रखने के लिए अहमियत देता है लेकिन समाज के कुछेक लोग राजनीतिक आस्था के इस समुद्र में इस खेल को खेलने के बेहद माहिर होते हैं। 


चुनाव परिणामों के उपरांत जीत के कोहिनूर हीरे कहीं न कहीं शून्य में विलीन हो जाते हैं। ऐसे सच्चे समर्थक अपने कर्तव्यों को पूरी तन्मयता से निभाने के उपरांत कुछ पाने की लालसा को दरकिनार कर पीछे हट जाते हैं और मौके की फिराक में बैठे चापलूस लोग उनका स्थान ले लेते हैं। आजकल नेताओं के दरबार में गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले ऐसे माहिर लोगों के जमावड़े लगे हुए हैं। हर चुनाव के उपरांत एक सरकार से गुलछरे उड़ाने के बाद ऐसे लोग नई नवेली सरकार से गफ्फे डकारने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं। इन दिनों ऐसे लोग नेताओं के पास पहुंचने के लिए नेताओं के किसी न किसी करीबी का सहारा या किसी संघों का सहारा लेकर अपनी उम्मीदों को पंख लगाने की जी तोड़ लाविंग करते नजर आ रहे हैं। 


कल तक विपक्षी दलों के नेताओं को फूटी आंख तक भी न सुहाने वाले कुछेक अधिकारी और कर्मचारी भी अपने मनमाफिक स्थानों पर जमे रहने के लिए चुनावों में अंदरखाते जी तोड़ मेहनत करने के झूठे दावे नेताओं के दरबारों में खुलेआम करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। जीत के मनघड़ंत आंकड़े पेश करके ऐसा दिखाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं मानों उसने उक्त नेता को जिताने के लिए चुनाव आचार संहिता के दौरान न तो भोजन खाया और यहां तक कि उसने परिवार का भी त्याग कर दिया था। ऐसे जुगाड़ु लोगों के कार्यालयों, व्यापारिक स्थलों और घरों तक में आस्था के भौंडे प्रदर्शन के चलते अब फोटो और झंडे तक बदल चुके हैं। 


भले ही अभी तक नई सरकार का गठन नहीं हुआ है लेकिन जुगाड़ुओं ने मलाई खाने के लिए महज चंद घंटों में अपनी तरफ से हर उस औपचारिकता को पूरा कर लिया है जिसकी बदौलत सत्ता सुन्दरी तक पहुंचकर सत्तापक्ष का हर नेता उसकी मुट्ठी में हो सके। नेताओं को गुलदस्तों से सम्मानित करके ऐसी फोटो को अपना रौब जमाने के लिए ऐसे जुगाड़ु लोग धड़ाधड़ सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं ताकि बदले राजनीतिक मौसम में उन पर कोई उंगली उठाने की हिम्मत न जुटा सके। इस बार के अप्रत्याशित चुनाव परिणामों ने नेताओं को सकते में डाल दिया है। जुगाड़ु तंत्र और माफिया के हत्थे चढ़े ऐसे कई नेताओं को इसका खमियाजा कुर्सी गंवाकर बड़ी कीमत के रूप में चुकाना पड़ा है लेकिन दूसरी तरफ पूर्व में ऐसे ही मामलों का शिकार हुए कई नेताओं ने अपने इर्द-गिर्द जमे ऐसे लोगों को भांपकर अपनी बिगड़ी छवि को समय रहते दुरुस्त करके पुन: सत्ता की कुर्सी भी हथियाई है।