अब भूकंप से पहले मिलेगी चेतावनी: हिमाचल में तैयार हो रहा नया 'मॉडल', अध्ययन बताएगा कहां अधिक संभावना
punjabkesari.in Wednesday, Dec 17, 2025 - 01:22 PM (IST)
हिमाचल डेस्क। हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश पर मंडराते भूकंपीय खतरों को अब विज्ञान की नई दृष्टि से परखा जाएगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मंडी ने अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से एक ऐसी अत्याधुनिक परियोजना की नींव रखी है, जो भूकंप आने से पहले प्रकृति में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को पकड़कर भविष्य की सटीक तस्वीर पेश करेगी।
यह प्रोजेक्ट महज एक शोध नहीं, बल्कि देवभूमि को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की दिशा में एक 'अर्ली वार्निंग' रोडमैप साबित हो सकता है।
अंतरिक्ष और ज़मीन का अनोखा तालमेल
इस शोध की सबसे बड़ी खूबी इसका तकनीकी मेल है। वैज्ञानिक अब केवल पुराने रिकॉर्ड्स पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि वे जीएनएसएस (GNSS) और इन-सार (In-SAR) जैसी सैटेलाइट तकनीकों का उपयोग करेंगे।
प्लेटों की चाल पर नज़र: जीएनएसएस के जरिए पृथ्वी की परतों में होने वाली मिलीमीटर स्तर की हलचल को भी मापा जा सकेगा।
तनाव की पहचान: इन-सार तकनीक यह बताएगी कि ज़मीन के नीचे किन फॉल्ट लाइन्स (भ्रंश रेखाओं) पर दबाव बढ़ रहा है और कहाँ ज़मीन धंस रही है या ऊपर उठ रही है।
इन दोनों तकनीकों के संगम से 6 या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकंपों के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार किया जाएगा, जो समय की सीमाओं से परे जाकर खतरे का पूर्वानुमान लगा सकेगा।
मंडी बनेगा शोध का केंद्र
36 महीनों तक चलने वाली इस परियोजना का शुरुआती फोकस मंडी और उसके आसपास के संवेदनशील इलाके रहेंगे। आईआईटी मंडी के महेश रेड्डी के नेतृत्व में यह टीम यहाँ की मिट्टी, ढलानों की बनावट और चट्टानों के व्यवहार का विश्लेषण करेगी। टीम में डेरिक्स पी. शुक्ला और धन्या जे. जैसे विशेषज्ञ भी शामिल हैं, जो डेटा को वैज्ञानिक मॉडल्स में तब्दील करेंगे।
क्यों खास है यह प्रोजेक्ट?
हिमाचल प्रदेश भूकंपीय संवेदनशीलता के मामले में ज़ोन 4 और 5 (अत्यधिक जोखिम) में आता है। इस प्रोजेक्ट से निकलने वाले परिणाम केवल कागजों तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि:
आपदा प्रबंधन: सरकार को यह पता होगा कि किन क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षित करना है।
बुनियादी ढांचा: भूकंपरोधी निर्माण के मानकों को ज़मीनी हकीकत के अनुसार बदला जा सकेगा।
संसाधन विकास: इस दौरान रिमोट सेंसिंग और जियोइन्फॉर्मेटिक्स के क्षेत्र में नए विशेषज्ञों की एक फौज भी तैयार होगी।
डॉ. डेरिक्स पी. शुक्ला, एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईटी मंडी का कहना है कि "हमारा लक्ष्य एक ऐसा मॉडल विकसित करना है जो न केवल भूकंप की संभावना बताए, बल्कि यह भी स्पष्ट करे कि किस क्षेत्र में इसका प्रभाव कितना विनाशकारी हो सकता है। मंडी से शुरू होकर यह अध्ययन आने वाले समय में अन्य संवेदनशील क्षेत्रों का सुरक्षा घेरा तैयार करेगा।"

