अब नई तकनीक के साथ भूस्खलन के खतरे को भांपेगा अर्ली वार्निंग सिस्टम

punjabkesari.in Thursday, Aug 04, 2022 - 12:22 AM (IST)

मंडी (रजनीश हिमालयन): आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा बनाया गया भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वार्निंग सिस्टम अब नई तकनीक के साथ भूस्खलन के खतरे को भांपेगा। शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को अप्रगेड करके पहले से अधिक मजबूती प्रदान की है। नए सिस्टम में भूस्खलन पूर्व चेतावनी के 2 मुख्य पहलुओं को अधिक मजबूत बनाया गया है। एक उपग्रह आधारित विश्लेषण (आईएनएसएआर) शुरू करना है जो उपग्रह से जमीन पर लगे सिस्टम को सबसिडैंस के परिणामस्वरूप जो क्षेत्रीय और स्थानीय भूस्खलन होते हैं उनके बारे में परिणामों की पुष्टि करेगा। दूसरा मुख्य रूप से मूवमैंट आधारित चेतावनी सिस्टम को क्षेत्रीय थ्रैसहोल्डिंग में अपग्रेड किया गया है, जो बारिश का पता लगाने और पूर्वानुमान के आधार पर मुमकिन होता है। साइट पर थ्रैसहोल्ड से ज्यादा मूवमैंट होते ही सैंसर अलर्ट करता है। तीव्रता के आधार पर और सिस्टम से मूवमैंट के अलर्ट की फ्रीक्वैंसी के अनुसार अलर्ट का निम्न, मध्यम और उच्च वर्गीकरण किया जाता है। यह भूस्खलन की संभावना का संकेत देते हैं। बारिश के आधार पर क्षेत्रीय अलर्ट और मूवमैंट के आधार पर स्थानीय अलर्ट को जोड़कर देखने से फाल्स अलार्म में कमी आती है और निगरानी और चेतावनी व्यवस्था अधिक स्टीक काम करती है।

किन्नौर-मंडी में मिल चुकी है सफलता
मानसून आने से पहले यह सिस्टम लगने से किन्नौर और मंडी के कुछ स्थानों को अलर्ट करने में सफलता मिली है। प्रशासन ने इस अलर्ट पर तत्परता से उचित कार्रवाई की है। 2021 के मानसून में किन्नौर में भूस्खलन के 3 बड़े मामले दर्ज किए गए, जिससे जनजीवन और बुनियादी ढांचे को नुक्सान पहुंचा। 

भूस्खलन बढ़ने का यह है मुख्य कारण
भूस्खलन के मामले बढऩे के मुख्य कारण मनुष्य की गतिविधियां और प्राकृतिक स्थितियां हैं। वैश्विक अध्ययन से यह सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते वर्षा के पैट्रन में बदलाव आया है। वर्षा की तीव्रता बढ़ी है और अवधि घटी है। डाटा से यह भी स्पष्ट है कि सभी राज्यों में जून और जुलाई में मानसून की वर्षा में कमी आई है। वर्षा के पैट्रन में इस बदलाव के चलते भूस्खलन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई अन्य कारणों से भी आपदा का खतरा बढ़ रहा है। जैसे प्राकृतिक प्रतिकूल परिस्थितियां, बिना सोचे-समझे सड़क काटना, ढलान बनाने में वृद्धि, वनों की कटाई और फिर रणनीतिक योजना एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव है। 

क्या कहते हैं आईआईटी मंडी के सहायक प्रोफैसर 
आईआईटी मंडी के सहायक प्रोफैसर डाॅ. केवी उदय ने बताया कि आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा पहले बनाए गए भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वार्निंग सिस्टम की तकनीक में बदलाव किया गया है। नए सिस्टम से पहले से अधिक मजबूती प्रदान की गई है। नई तकनीक से भूस्खलन के परिणामों का पता लगेगा और निगरानी और चेतावनी व्यवस्था अधिक सटीक काम करेगी। संबंधित क्षेत्रों में खतरों और जोखिमों की मैपिंग की जानी चाहिए ताकि मध्यम और उच्च जोखिम वाले भूस्खलन संभावित स्थानों की पहचान हो। मध्यम जोखिम वाले क्षेत्रों के लिए पौधारोपण, भूस्खलन पूर्व चेतावनी सिस्टम और जन जागरूकता बढ़ाने जैसे अविलंब और कारगर उपाय किए जाने चाहिए और उच्च जोखिम क्षेत्रों में लोगों की जान बचाने के लिए उपयुक्त वैज्ञानिक अध्ययन आधारित उपाय किए जाने चाहिए। 

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Content Writer

Vijay

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