नौकरी नहीं मिली, तो दिव्यांग पत्थर तोड़ कर भर रहा मां-बाप का पेट

Sunday, Apr 30, 2017 - 04:32 PM (IST)

कांगड़ा : हिमाचल प्रदेश में चढ़ियार जिले के प्रदीप पर कुदरत ने ऐसा सितम ढाया कि पोलियो के कारण वह दोनों टांगों से अपाहिज हो गया, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और 12वीं तक शिक्षा प्राप्त की। दरअसल, घर की माली हालत के चलते आगे पढ़ नहीं सका तो परिवार चलाने के लिए मनरेगा में पत्थर तोड़ने का काम करने लगा। जिससे उसके घर की दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होता है। उसने कहा कि मनरेगा में लगातार काम नहीं मिलता। लेकिन वह कभी भीख नहीं मांगेगा, वह सरकार से एक अदद स्थायी रोजगार चाहता है। फिलहाल जयसिंहपुर के समाजसेवी संजय शर्मा ने प्रदीप की आर्थिक सहायता की है। वह अपने बूढ़े मां-बाप संग अपने भरण-पोषण के लिए वह अपने आत्म सम्मान के साथ कोई रोजगार चाहता है। सरकार कब उसकी पुकार सुनेगी।

सरकार से रोजगार के लिए लगाई गुहार
प्रदीप ने बताया कि उसने सरकार के दर कई बार रोजगार के लिए गुहार लगाई, लेकिन हर बार आश्वासनों का झुनझुना ही मिला। सरकार की उपेक्षा से टूट चुके चढ़ियार के मतियाल गांव निवासी 38 वर्षीय प्रदीप को 92 वर्षीय बुजुर्ग पिता प्रताप सिंह और 77 वर्षीय मां का पालण-पोषण करना कठिन हो गया है। उसका कहना है कि सीएम के पास जाकर रोजगार देने की गुहार 5 बार लगा चुका है, लेकिन रोजगार देना तो दूर सरकार की तरफ से सहानुभूति का एक पत्र भी नहीं मिला। वह कई राजनेताओं के पास गया, लेकिन अब तक आश्वासन ही मिले। वहीं दूसरी ओर दिव्यांग प्रदीप और उसके बुजुर्ग माता-पिता को मात्र 1850 रुपए सरकार की तरफ से मासिक पेंशन के रूप में मिलते हैं। प्रदीप का कहना है कि यह राशि उसके बीमार चल रहे माता-पिता की दवाइयों पर  खर्च होती है। प्रदीप अपनी मां का इलाज करवाना चाहता है, लेकिन रोजगार के बिना वह असहाय है।