बीमारियां 100 हैं तो मेरे पास इलाज 110, ट्रीटमैंट करता रहूंगा: किशन

Tuesday, Aug 21, 2018 - 12:26 PM (IST)

कांगड़ा(जिनेश): यहां जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है तो किसी भी पोस्ट की क्या गारंटी है? यह कहना था हिमाचल सरकार में मंत्री किशन कपूर का। उनके शब्दों में जयराम के लिए जितना सम्मान था, उतना ही शांता-धूमल के लिए भावनात्मक अपनापन। पेश हैं हमारे प्रतिनिधि जिनेश कुमार से हुई उनकी बातचीत के कुछ अंश।

विभाग आपके पास सिर्फ एक है जबकि आपके जूनियर नेताओं के पास थोक में अहम विभाग हैं ?
कोई भी विभाग अहम या बेकार नहीं होता। मेरे पास तो ईश्वर की दया से ऐसा है कि जिसमें मुझे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक की सेवा करने का मौका मिल रहा है। यह अहम का वहम न मुझमें कभी था और न ही कभी होगा। यहां जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है तो किसी भी बड़ी-छोटी पोस्ट का क्या महत्व है? मतलब सिर्फ काम करने से होता है कि आप कैसा काम कर रहे हैं। 

आप पर आरोप लगता है कि आप सरेआम अपने विभागीय अधिकारियों को खास से आम बना देते हैं, झाड़ पिला देते हैं?
हम किसके लिए हैं? अफसर किस बात की तनख्वाह लेते हैं? जनता की सेवा के लिए ही न। जिसके नाम पर हम काम करते हैं, उन्हीं के साथ बेइंसाफी होगी तो इसको कम से कम मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा।

आपसे पहले यही महकमा कांग्रेस में जी.एस. बाली के पास था। जब भी कोई बवाल होता था तो पूरी सरकार कटघरे में आ जाती थी पर इस मर्तबा अभी तक कोई बवाल नहीं हुआ। क्या वजह है?
कोई खास वजह नहीं है। सिर्फ एक ही वजह है और वह है पारदर्शिता। मैं जनता के रसूख को अहमियत देता हूं, खुद को नहीं। हमने इस बार करोड़ों रुपए की बचत की।  

आपकी और आपके महकमे की कार्यशैली की चर्चा तो खुद पी.एम. नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट में की थी। आप तब तो कुछ नहीं बोले थे, अब बता दीजिए?
मैंने कहा न, कर्म करता हूं। मोदी जी ने सराहना की तो यह भी उनसे मिली प्रेरणा का ही नतीजा था कि हमारी सरकार ने ऐसा कुछ किया कि वह उनको अच्छा लगा। मोदी जी तो पूरी दुनिया में भारत के ब्रांड एम्बैसेडर हैं। उनकी ब्रांडिंग कोई क्या करेगा। 

सवाल उठ रहे हैं कि आपकी सरकार में संगठन की ही चल रही है, सरकार सिर्फ ठप्पा भर है?
ये सवाल ही नहीं हैं। संगठन है तो सरकार है। संगठन सर्वोपरि होता है। लोग सरकार बनाते वक्त संगठन को तरजीह देते हैं तो सरकार बनती है। ये विपक्ष के घटिया हथकंडे हैं। 

काफी दिनों से शोर मचा हुआ है कि मंत्रिमंडल के विभागों में फेरबदल हो सकता है। क्या उम्मीद की जाए कि आपके पोर्टफोलियो में एक की जगह 3-4 चांद लगेंगे?
मैंने कहा न, मैं संतुष्ट हूं। मैं कभी परछाई नहीं देखता हूं। आगे देखता हूं। 

पर एक बात तो आप भी मानते होंगे कि महकमे में लापरवाही की बीमारी फैली हुई है?
मैं एक अनार सौ बीमार की कहावत पर भरोसा नहीं करता हूं। मैं यह मानता हूं कि अगर 100 बीमारियां हैं तो मेरे पास उनके 110 इलाज हैं। ट्रीटमैंट कर भी रहा हूं और करता भी रहूंगा। लाइलाज तो कुछ भी नहीं है, बस नब्ज पकड़कर नस दबाने की देरी होती है। 

इसके लिए कोई खास नीति निर्धारण तो किया होगा?
बिल्कुल। इसका इलाज है जनता की वाणी और उसकी वाणी में छिपा हुआ संदेश। समाज ही किसी भी व्यवस्था में त्रुटियां दिखाता और बताता है। मैं जनता की आवाज सुनता-समझता हूं। जनता की सोच के मुताबिक नीति निर्धारण करता हूं। खुद की कमियों को भी परखता हूं और अफसरशाही की भी। 

आगे के लिए कोई खास योजना?
आजकल वक्त उपभोक्ता का है, न कि उपभोग का। मैं यूजर की डिमांड के मुताबिक ही चलूंगा। समाज में सुधार और विकास निरंतर चलने वाली क्रिया है। यह बिना अवरोध आगे बढ़ेगी और जनता के सुझाव के मुताबिक ही योजनाएं बनेंगी। 

आप शांता कुमार-प्रेम कुमार धूमल के बाद जयराम ठाकुर के साथ काम कर रहे हैं। क्या फर्क आंकते हैं?
हमारे हर सी.एम. ने इतिहास रचा है। जयराम जी ने तो एक साथ 30 नई योजनाओं को बजट सहित जनता को समर्पित किया है। यह ऐतिहासिक कदम रहा है। फर्क कोई नहीं है, जयराम जी बतौर सी.एम. नए चेहरे जरूर हैं मगर शालीनता और वर्किंग कल्चर ठीक वैसा ही है जैसा शांता जी और धूमल जी का रहा है और आज तक उसको याद किया जाता है।

Ekta