धर्मशाला पैटर्न पर नहीं अब पार्टी सिंबल पर हो सकते हैं चुनाव, जानिए क्यों

Sunday, Apr 23, 2017 - 09:57 AM (IST)

शिमला: नगर निगम शिमला के चुनाव पार्टी सिंबल पर हो सकते हैं। इसके लिए सरकार ने कसरत आरंभ कर दी है। सरकार ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि शिमला में धर्मशाला पैटर्न नहीं चलेगा। यहां की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं। सरकार ने पहले फैसला लिया था कि चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं होंगे। इसके लिए नगर निगम एक्ट में बाकायदा संशोधन किया लेकिन इस व्यवस्था के खिलाफ पुरजोर आवाज उठ रही है। संगठन यानी कांग्रेस की राय भी सरकार से मेल नहीं खा रही है। संगठन चाहता है कि चुनाव हर हाल में पार्टी सिंबल पर हो। बेशक उसमें किसी भी दल को बहुमत मिले। अभी तक कांग्रेस की राय को खास तवज्जो नहीं मिल पा रही थी। जिन नेताओं ने नगर निगम का चुनाव लड़ा, वे भी संगठन के साथ खड़े हैं। 


कई विधायक कांग्रेस के तर्क से सहमत
सत्ताधारी दल के कई विधायक भी कांग्रेस के तर्क से सहमत हैं। कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध सिंह ने तो इस बाबत बाकायदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपने पक्ष में कई तर्क दिए हैं। उनके पत्र के आधार पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कुछ दिन पहले ही उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के अलावा शहरी विकास विभाग के अफसर भी मौजूद रहे। बैठक में राज्य पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश जनारथा भी उपस्थित रहे। उन्होंने विधायक के तर्कों को सही ठहराया। इससे अनिरुद्व सिंह को जनारथा का साथ मिल गया। उपाध्यक्ष को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का काफी करीबी माना जाता है। 


पार्टी सिंबल पर ही चुनाव करवाने के दिए थे निर्देश
उन्होंने पिछला विधानसभा का शिमला सीट से चुनाव भी लड़ा था और वह दूसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि जीत का स्वाद नहीं चख पाए थे लेकिन वीरभद्र की नजदीकी का लाभ उन्हें जरूर मिला और उन्हें सत्ता का सुख जरूर भोगने का मौका मिला। इन 2 नेताओं की मौजूदगी में वीरभद्र ने निगम चुनाव पार्टी सिंबल पर ही करवाने के निर्देश दिए थे। अनिरुद्ध ने आरक्षण रोस्टर का भी मुद्दा शिद्दत के साथ उठाया था। उन्होंने कहा था कि अगर महिलाओं की आबादी के आधार पर ही वार्ड महिलाओं के आरक्षित होंगे तो ये कभी पुरुषों के लिए ओपन नहीं हो सकेंगे क्योंकि अगले चुनाव में भी आबादी घटेगी नहीं और बढ़ेगी। उन्होंने वार्डों का आरक्षण पर्ची सिस्टम से ही करवाने की बात कही। यही बात शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा भी कहते रहे हैं। बावजूद इसके आबादी आधारित रोस्टर सिस्टम लागू होने की भी खबरें आ रही हैं। 


अब गेंद पूरी तरह से सरकार के पाले में
कसुम्पटी के विधायक ने कहा कि रोस्टर पर कन्फ्यूजन को दूर किया जाए। इससे पार्षद पद का चुनाव लड़ने के इच्छुक पुरुष और महिला दोनों वर्गों में अस्पष्टता बनी हुई है। लिहाजा इसे सरकार स्पष्ट करे। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह दिल्ली में हैं। वह कल नीति आयोग की होने वाली बैठक में भाग लेंगे। इससे पहले वह ई.डी. के मनी लॉन्ड्रिंग केस में व्यस्त थे। जैसे ही शिमला पहुंचेंगे, वैसे ही पार्टी सिंबल और रोस्टर दोनों को लेकर कोई फैसला ले सकते हैं। अब गेंद पूरी तरह से सरकार के पाले में है। चुनाव नजदीक आते देख अब सरकार भी हरकत में आ जाएगी। सी.एम. कभी भी चुनावी हुंकार भर सकते हैं। हालांकि उन्होंने हाल ही में निगम चुनाव को लेकर सभी को प्रेमभाव से चुनाव लड़ने का आह्वान किया था। तब उन्होंने एक साथ करीब एक दर्जन शिलान्यास और उद्घाटन किए थे। ये सभी उद्घाटन निगम परिधि में हुए थे। इससे भी चुनावी हलचल तेज हो गई थी।


धर्मशाला में नहीं हुआ था पार्टी सिंबल पर चुनाव
धर्मशाला को पहली बार नगर निगम का दर्जा मिला। अब प्रदेश में 2 नगर निगम हो गए हैं। हालांकि धर्मशाला को लेकर सवाल कम नहीं उठे। फिर भी शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा के प्रयास रंग लाए। उन पर मुख्यमंत्री भी मेहरबान रहे। वहां पर चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं हुए। ठीक वैसे ही जैसे शिमला में 1986 में हुए थे। उसके बाद शिमला में जितने भी चुनाव हुए, सभी पार्टी के सिंबल पर हुए। धर्मशाला में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार ज्यादा जीते। भाजपा का तो तब सूपड़ा ही साफ हो गया था। पार्टी ने कोशिशें कम नहीं की थीं, पर उनकी चुनावी रणनीति सफल नहीं हो पाई। कहीं न कहीं रणनीति बनाने में कमी रह गई। नतीजन कांग्रेस का पंजा भगवा पर भारी पड़ा। कांग्रेस समर्थित ही मेयर और डिप्टी मेयर बने लेकिन बिना पार्टी सिंबल के सबसे बड़ा खतरा तब होता है जब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होता है। अगर दिसम्बर महीने में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई तो फिर उस सूरत में धर्मशाला नगर निगम में भी मेयर और डिप्टी मेयर की कुर्सी पर कांग्रेस समर्थित व्यक्ति शायद ही बैठ पाएगा। 


क्या चाहती हैं पार्टियां
राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा और माकपा भी पार्टी सिंबल पर ही चुनाव करवाने की पक्षधर हैं। निगम पर आज तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। हां पिछला चुनाव जरूर अपवाद रहा। निगम में पार्षदों की ज्यादा संख्या भाजपा की रही। अव्वल स्थान पर रहने वाली कांग्रेस पहली बार दूसरे स्थान पर खिसकी। माकपा के भी 3 पार्षद जीते। मेयर और डिप्टी मेयर के सीधे चुनाव करवाए जाने से पार्षदों की अहमियत कम हो गई। मेयर और डिप्टी मेयर पर माकपा के उम्मीदवारों ने बाजी मारी। यही बात कांग्रेस को अखरी। सत्ता में आते ही मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव फिर से अप्रत्यक्ष तरीके से करवाने की व्यवस्था की। एक्ट में संशोधन कर दिया। पूर्व भाजपा सरकार के प्रावधान को खत्म कर दिया, साथ ही पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की व्यवस्था को भी बदल दिया। अब फिर से एक व्यवस्था को बहाल करने की बातें हो रही हैं। कांग्रेस के अलावा भाजपा और माकपा भी निगम चुनाव पार्टी सिंबल पर करवाने के पक्ष में हैं लेकिन इन 2 दलों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सुनवाई होगी तो सत्ताधारी दल कांग्रेस की। इस बारे में कांग्रेस के महासचिव नरेश चौहान का कहना है कि दिल्ली से वापस लौटते ही कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने मुलाकात करेंगे। उनके साथ नगर निगम चुनाव से जुड़े कई मसलों पर बातचीत होगी। इसमें पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने और आरक्षण रोस्टर का मुद्दा भी शामिल होगा। चौहान का कहना है कि पार्टी को सिंबल पर चुनाव करवाने में कोई एतराज नहीं है। यह सरकार को तय करना है कि वह क्या फैसला लेती है।


अधिकतर निगम पार्षद पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने के पक्षधर 
नगर निगम के चुनाव पार्टी सिंबल पर करवाने को कवायद तेज हो गई है। निगम चुनाव को लेकर शिमला में सरगर्मियां भी जोरों पर हैं, ऐसे में नगर निगम के अधिकतर मौजूदा पार्षद भी पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने के पक्षधर हैं लेकिन ऐसे भी पार्षद हैं जो बगैर पार्टी सिंबल के चुनाव करवाने के हित में हैं। पार्षदों का कहना है सरकार जो भी अधिसूचना जारी करेगी, उसी पद्धति से चुनाव होंगे। धर्मशाला में बिना पार्टी के चुनाव करवाए गए थे लेकिन यदि इतिहास के पन्नों को खोला जाए तो शिमला नगर निगम में पहला चुनाव बिना पार्टी सिंबल के हुआ था, उसके बाद से यहां पर पार्टी आधार पर चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में पार्षदों का कहना है कि चुनाव चाहे पार्टी सिंबल पर हों या फिर बिना पार्टी के, जो भी प्रतिनिधि चुनकर आएं वे जनता के हितों में कार्य करें और शिमला का विकास करने में अपना सहयोग दें। निगम के कांग्रेसी पार्षद सुरेंद्र चौहान का कहना निगम चुनाव लंबे समय से पार्टी सिंबल पर होते आ रहे हैं, ऐसे में आगे भी पार्टी सिंबल पर ही होने चाहिए। बाकी सरकार का फैसला अभी आना है, जिससे स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।


धर्मशाला पैटर्न पर चुनाव करवाने को लेकर की चर्चाएं
सुशांत कपरेट का कहना है कि निगम चुनाव पार्टी सिंबल पर होने चाहिए लेकिन अभी तक धर्मशाला पैटर्न पर चुनाव करवाने को लेकर चर्चाएं की जा रही हैं। चुनाव को लेकर सरकार की अधिसूचना आने से ही मामले पर स्थिति साफ हो सकेगी। ढली से पार्षद शैलेंद्र चौहान का कहना है कि वैसे तो चुनाव पार्टी आधार पर ही होने चाहिए, अब देखना होगा कि सरकार ने चुनाव को लेकर क्या प्रारूप तैयार किया है। निगम पार्षद कांता सुयाल का कहना है कि निगम चुनाव पार्टी आधार पर नहीं होने चाहिए। धर्मशाला में भी बिना पार्टी सिंबल के चुनाव हुए थे, वहीं पार्षद कला शर्मा का कहना है कि चुनाव पार्टी सिंबल के बिना ही होने चाहिए। अब तक बिना पार्टी सिंबल के आधार पर चुनाव होने की चर्चाएं हैं, बाकी सरकार की अधिसूचना आने के बाद ही मामला साफ हो सकता है। मौजूदा समय में नगर निगम के भीतर 12 भाजपा के पार्षद हैं जबकि 11 कांग्रेस और 2 पार्षद माकपा के हैं लेकिन अब वार्डों की संख्या 25 से बढ़ाकर 34 कर दी गई है, ऐसे में चुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आ सकता है। निगम चुनाव को लेकर सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि चुनाव किस आधार पर करवाए जाएंगे।