DC साहब! इस परिवार तक नहीं पहुंची आपकी योजना, दृष्टिहीन बहनों को मदद की है दरकार

Thursday, Jan 03, 2019 - 04:51 PM (IST)

ऊना (सुरेन्द्र): कुछ करने का जज्बा हो तो कोई बाधा भी राह नहीं रोक सकती है। कुछ ऐसा है बी.पी.एल. परिवार से संबंधित दृष्टिहीन 2 सगी नन्हीं बहनों का पढ़ाई का जज्बा। 5वीं कक्षा में पढ़ने वाली कोमल और दूसरी कक्षा की काजल दोनों जन्म से ही आंखों की रोशनी से वंचित हैं लेकिन सरकारी स्कूल में फिर भी अध्ययनरत हैं। इनमें से कोमल 12 वर्ष की है जबकि काजल 9 वर्ष आयु की है। दोनों नन्हीं बच्चियों की मां भी काफी हद तक दृष्टिबाधित है जबकि पिता पेशे से मजदूर है। पिता अपनी दोनों बच्चियों को घर से एक किलोमीटर दूर स्कूल तक छोड़ने आता है और मां जैसे-तैसे करके उन्हें स्कूल से छुट्टी होने पर वापस घर लाने जाती है। 

बिना ब्रेन लिपि के पढ़ रहीं दोनों बहनें

बहड़ाला निवासी शंभुनाथ की 2 बेटियां कोमल और काजल हैं जोकि दृष्टिबाधित हैं। उनकी पत्नी प्रवीण कुमारी भी काफी हद तक दृष्टिबाधित हैं। उनकी दोनों बेटियां बहड़ाला के प्राइमरी स्कूल में अध्ययनरत हैं। यहां स्कूल में वह बिना ब्रेन लिपि से शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं। दोनों बहनें कुशाग्र बुद्धि होने के चलते पूरे स्कूल स्टाफ सहित कक्षाओं के बच्चों की चहेती बनी हुई हैं। दोनों बहनों को उनकी पढ़ाई पूरी तरह से याद है लेकिन दृष्टिविहीन होने के चलते वह कुछ लिख पाने में अक्षम हैं। दोनों का इलाज करवाने के लिए भी स्कूल के हैड टीचर सहित स्टाफ प्रयासरत है।

बी.पी.एल. में शुमार लेकिन सुविधाएं नहीं

शम्भुनाथ यूं तो बी.पी.एल. परिवारों की सूची में शुमार है लेकिन उसको मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं अभी तक नहीं मिल पाई हैं। 3 कमरों के घर में वह अपने भाई के साथ रहता है। शंभुनाथ के घर में न तो रसोई गैस की सुविधा है और न ही शौचालय की। रसोई गैस के लिए आवेदन करने के बावजूद उसको अभी तक गैस कनैक्शन नहीं मिल पाया है। कच्ची रसोई में दोनों परिवारों का खाना चूल्हे पर लकड़ियों के सहारे बनाया जाता है।

कोमल के पी.जी.आई. में हुए 3 आपरेशन

दोनों बहनों में से कोमल का पी.जी.आई. में 2016 से लेकर 2018 तक उनके सैंटर हैड टीचर रविकांत शर्मा के सहयोग से 3 बार आंखों के आपरेशन हुए जिसके बाद उसको अब चश्में के सहारे 20 फीसदी तक दिखाई पड़ने लगा है लेकिन कुछ दिन पहले चश्में के टूट जाने के पर वह गरीबी के चलते दोबारा चश्मा तक नहीं बनवा पाए हैं। ऐसे में कोमल को अब पढ़ने में एक बार फिर से दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।

कोमल के इलाज के लिए 7 लाख रुपए की दरकार

कोमल के बाद अब काजल को इलाज की दरकार है। उसको इलाज के लिए पी.जी.आई. ले जाया गया था लेकिन वहां से उसके इलाज के लिए लगभग 7 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। अत्यंत गरीब और मजदूर परिवार से संबंधित शंभु के लिए अपनी बेटी के इलाज का खर्च उठाना मुमकिन नहीं है। ऐसे में कोमल का इलाज शुरू नहीं हो पाया है जबकि वह पूरी तरह से देखने से वंचित है।

अब तक नहीं बन पाया डी.सी. कार्ड

यूं तो डी.सी. ऊना राकेश कुमार प्रजापति ने बेटियों वाले परिवारों के लिए डी.सी. कार्ड की योजना चलाई है लेकिन इस योजना का लाभ भी इन बहनों और उनके परिवारों को नहीं मिल पाया है। यहां तक की उनका डी.सी. कार्ड तक नहीं बन पाया है। विभिन्न सरकारी योजनाओं के सहारे इलाज की राह देख रहे इस परिवार को सरकारी योजनाओं का ज्ञान तक नहीं है और न ही किसी ने उनकी अभी तक इस बारे में मदद की है। बहड़ाला स्कूल के हैड टीचर रविकांत शर्मा की मानें तो दोनों बहनें शिमला में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए चल रहे सरकारी स्कूल पोर्टमाल में जाने को तैयार हैं। वहां रह कर इन दोनों बच्चियों को पढ़ाई के लिए काफी सहूलियत मिलेगी। प्रशासन को इस संबंध में पहल करते हुए आगामी कदम उठाए जाने चाहिए ताकि दोनों बच्चियों का भविष्य संवर सके। दोनों ही बच्चियां बहुत की कुशाग्रबुद्धि है और यह दोनों आगे चलकर काफी नाम रोशन करेंगी।

Ekta