हिमाचल के सबसे दुर्गम इलाके की बेटी ने डॉक्टर बनने की ठानी, जानिए क्या है वजह

Wednesday, Mar 27, 2019 - 10:10 AM (IST)

पालमपुर (मुनीष दीक्षित): गांव की मिट्टी व उसकी खुशबू से हर कोई जुड़ा होता है। यही जुड़ाव है जो दुनिया के किसी भी कोने में रहने वालों को अपनी ओर खींच लाता है। कोई सफल व्यक्ति भी किसी ऊंचे मुकाम पर पहुंचने के बावजूद भी अपने गांव व वहां की समस्याओं के निदान में तुरंत आगे आता है। ऐसी ही एक बेटी ने जब अपने गांव में स्वास्थ्य सेवाएं न होने की पीड़ा देखी तो उसने गांव में एक चिकित्सक के रूप में सेवाएं देने के लिए डॉक्टरी की ही पढ़ाई शुरू कर दी। मामला हिमाचल प्रदेश की अति दुर्गम पंचायतों में से एक बड़ा भंगाल पंचायत का है। जिला कांगड़ा की इस पंचायत में 2 दशक यानी 20 साल से अधिक समय से कोई चिकित्सक नहीं है। पंचायत में 60 के दशक में एक आयुर्वैदिक स्वास्थ्य केंद्र शुरू किया गया था। शुरूआती दौर में वहां चिकित्सक तैनात था लेकिन करीब 20 साल से यहां कोई चिकित्सक नहीं है। 

चिकित्सक के अभाव में कुछ साल तक फार्मासिस्ट ही सेवाएं देता रहा लेकिन कुछ समय से वहां फार्मासिस्ट का पद भी खाली है। अब इस गांव में लोगों के स्वास्थ्य को देखने वाला कोई नहीं है। ऐसे में बीमार होने पर इस पंचायत के लोगों के पास कोई चारा नहीं होता कि वे कहीं आसपास भी अपना इलाज करवा पाएं क्योंकि मामूली उपचार के लिए भी उनका नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र करीब 78 किलोमीटर दूर बीड़ या फिर 60 किलोमीटर दूर चम्बा के होली जाना होता है। यहां तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं बल्कि रावी नदी व दुर्गम ग्लेशियरों के बीच से होकर पैदल ही जाना पड़ता है। गांव की इस पीड़ा को जब बड़ा भंगाल से बीड़ गांव में आकर रह रहे एक परिवार की बेटी मृनालिनी ठाकुर ने जान तो उसने अपने सभी सपने छोड़कर केवल गांव में चिकित्सक बनने की ठान ली।

प्रसिद्ध पैराग्लाइडर पायलट ज्योति ठाकुर की बेटी मृनालिनी ठाकुर ने अपनी इस सोच के बारे में पिता व माता मीना ठाकुर को बताया तो दोनों इसके लिए राजी हो गए। ज्योति ठाकुर का मूल घर बड़ा भंगाल में है। दुग्ध उत्पादन के जरिए कड़ी मेहनत से आज ज्योति ठाकुर का परिवार अपने आॢथक ढांचे को मजबूत कर पाया है। ज्योति ने खुद अपने माता-पिता साथ बड़ा भंगाल में बीमार होने के हालात को देखा था। कुछ प्रयास हुए और पिछले साल से मृनालिनी ठाकुर मंडी में एक निजी संस्थान से आयुर्वेद में स्नातक की पढ़ाई करने लग पड़ी। अब वह बी.ए.एम.एस. के दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही है।

मृनालिनी ने बताया कि वह अपने पिता की तरह एडवैंचर स्पोर्ट्स में जाना चाहती थी लेकिन अपने गांव के लोगों के दर्द को कम करने के लिए उसने यह राह पकड़ी है। उसे उम्मीद है कि उसे आगे सफलता मिलेगी और वह बड़ा भंगाल में अपनी सेवाएं दे पाएगी। पिता ज्योति ठाकुर कहते हैं कि आज हर कोई शहर की तरफ दौड़ रहा है लेकिन जब बेटी ने बड़ा भंगाल में लोगों को चिकित्सा उपलब्ध करवाने की अपनी बात रखी थी तो वह भी हैरान हो गए थे लेकिन उसे मैंने मना नहीं किया, बल्कि उसे प्रोत्साहित किया।

बड़ा भंगाल से होगी पहली डॉक्टर

मृनालिनी ठाकुर बी.ए.एम.एस. और एम.डी. की पढ़ाई करने के बाद बड़ा भंगाल पंचायत की पहली डाक्टर बनने का भी गौरव प्राप्त कर लेगी। इस गांव से अभी तक चिकित्सा के क्षेत्र में कोई नहीं आया है। बड़ा भंगाल गांव तक पहुंचने के लिए पैदन 3 दिन का रास्ता तय करना पड़ता है। किसी बड़ी मुसीबत के समय यहां हैलीकॉप्टर से ही रैस्क्यू टीमें पहुंचती हैं। यहां के लोगों को राशन एक साथ बरसात के समय भेज दिया जाता है। नवम्बर से अप्रैल तक यह गांव बर्फबारी होने से शेष दुनिया से कटा रहता है। यहां संपर्क के लिए एक सैटेलाइट फोन है, जो सोलर लाइट पर ही आश्रित होता है। इसके अलावा 6 साल से पंचायत में बिजली नहीं है।

बड़ा भंगाल में नहीं कोई जाने को तैयार

बड़ा भंगाल आयुर्वैदिक स्वास्थ्य केंद्र में कोई जाने को तैयार नहीं है। इसका कारण वहां की दुर्गम परिस्थितयां हैं। वहां न फोन चलते हैं, न बिजली है और न ही सड़क है। हवाई सेवा भी एमरजैंसी या चुनाव में ही मिलती है। यही कारण है कि वहां के स्कूल या स्वास्थ्य केंद्र में बाहर से कोई जाने को तैयार नहीं होता है। इस क्षेत्र को कर्मचारी काले पानी की संज्ञा देते हैं।

Ekta