डलहौजी हिल स्टेशन को लेकर हुआ बड़ा खुलासा

Sunday, Jul 16, 2017 - 02:01 PM (IST)

शिमला: हिमाचल प्रदेश के 163 साल पुराने 'डलहौजी हिल स्टेशन' का नाम भारत के मशहूर गवर्नर जनरल पर रखा गया लेकिन अगर एक नई किताब के दावों पर विश्वास किया जाए तो खुद लॉर्ड डलहौजी कभी वहां नहीं गए थे। रिटायर्ड नौकरशाह किरण चड्ढा ने अपनी किताब 'डलहौजी, थ्रू माई आईज' में यह दावा किया है। तकरीबन 200 पन्नों की यह सचित्र किताब गाईडबुक, रमनीय स्थानों और राज काल की इमारतों का एल्बम और रोचक जानकारियों से भरी यादें हैं। रिटायर्ड किरण 1950 में अंबाला में पैदा हुई। वह डल्हौजी में पली है। उनका परिवार यहां शुरूआती निवासियों में से हैं।  उन्होंने कहा कि उसने किताब लिखने के लिए करीब 1 साल तक राज काल की छावनी और नगरपालिका रिकॉर्ड छाने।


लॉर्ड डल्हौजी ब्रिटिश भारत में अपने कार्यकाल के दौरान कभी डलहौजी नहीं गए
किताब का लोकार्पण पिछले हफ्ते दिल्ली में त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय ने किया था। उसने बताया कि नेहरू डलहौजी के शताब्दी समारोह में 1954 को शहर में आए थे। उनसे पहले रबिन्द्रनाथ टैगोर और लेखक रडयार्ड किप्लिंग वहां गए थे। किताब लिखने का एक उद्देश्य अगली पीढ़ी तक इतिहास के इन पहलुओं को लाना था। अपनी किताब के 'डलहोजी की स्थापना' अध्याय में किरण कहती है कि लॉर्ड डल्हौजी ब्रिटिश भारत में अपने कार्यकाल (1848-1856) के दौरान कभी डलहौजी नहीं गए।


कोलकाता के मशहूर डलहौजी स्क्वायर का नाम आजादी के बाद यह रखा गया
उसके दावे पर पूछे जाने पर इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि लॉर्ड डलहौजी वहां नहीं जा पाए हों। वह गवर्नर जनरल थे और गवर्नमेंट हाउस कलकत्ता (अब कोलकाता) में था। इसलिए दूरी एक और कारक हो सकती है। थापर ने कहा कि इसे तभी तय किया जा सकता है जब इसकी पुष्टि के लिए एेेतिहासिक दस्तावेज हों। मजे की बात है कि कोलकाता के मशहूर डलहौजी स्क्वायर का नाम आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानियों पर बिनोय-बादल-दिनेश बाग या बीबीडी बाग रखा गया। इसी साल फरवरी में दिल्ली के डलहौजी रोड का नाम बदल कर 'दारा शिकोह रोड' कर दिया गया।