दलाईलामा बोले-सामंतवाद से जुड़ा है पुनर्जन्म, लामाओं के अवतार की खत्म हो परंपरा

Friday, Oct 25, 2019 - 10:01 PM (IST)

धर्मशाला (सौरभ): चीन द्वारा तिब्बत में अपने स्तर पर दलाईलामा के 15वें अवतार की खोज के बीच तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने दलाईलामा संस्थान को लेकर बड़ा बयान दिया है। मैक्लोडगंज में अपने निवास स्थान पर शुक्रवार सुबह धर्मशाला कॉलेज सहित उत्तर भारत व अन्य शैक्षणिक संस्थानों से आए 150 छात्रों से प्राचीन भारतीय सभ्यता पर संवाद सत्र के दौरान दलाईलामा ने कहा कि पुनर्जन्म कहीं न कहीं सामंतवाद (जागीरदार प्रथा) से जुड़ा हुआ है। अब पुनर्जन्म की यह परंपरा खत्म होनी चाहिए।

निजी विश्वविद्यालय की छात्रा ने किया था सवाल

दरअसल जालंधर के एक निजी विश्वविद्यालय की छात्रा ने उनसे प्रश्न पूछा था कि आधुनिक विज्ञान और आधुनिक शिक्षा आगे बढ़ रही है, लेकिन परंपरा उसी तरह आगे नहीं बढ़ रही। इस प्रश्न के उत्तर में दलाईलामा ने कहा कि कुछ तय परंपराएं तो ठीक हैं, लेकिन कई परंपराएं सामंतवाद से जुड़ी हैं। तिब्बती धर्मगुरु बोले-जैसे मेरा अपना दलाईलामा संस्थान भी मुझे लगता है कि कहीं न कहीं सामंतवाद (जागीरदार प्रथा) से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि मेरी राय में दलाईलामा संस्थान महज तिब्बत के लोगों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।

कई लामाओं ने तिब्बती समुदाय को किया शर्मसार

उन्होंने कहा कि तिब्बत के इतिहास मेंकई लामाओं (गुरु) ने उल्लेखनीय योगदान दिया लेकिन कई लामाओं ने तिब्बती समुदाय को शर्मसार भी किया। व्यक्तिगत रूप से कुछ लामाओं ने पुनर्जन्म की परंपरा का अपने हित में इस्तेमाल किया। ऐसे लामाओं ने कभी भी अध्ययन पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए वह महसूस करते हैं कि लामाओं की कोई संस्था नहीं होनी चाहिए और न ही उनका पुनर्जन्म। दलाईलामा ने कहा कि 21वीं सदी बुद्धिज्म की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा पद्धति में प्राचीन सभ्यता भी शामिल करने की जरूरत है।

मेरा शरीर भारत में परंतु मन तिब्बत में

दलाईलामा ने कहा कि उनका शरीर बेशक भारत में है, लेकिन उनका मन तिब्बत में रहता है। एक अन्य छात्रा द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में दलाईलामा ने कहा कि कई तिब्बतियन चाहते हैं कि तिब्बत में उनकी वापसी हो लेकिन तिब्बत में रह रहे लोग इस बात की भी सराहना करते हैं कि दलाईलामा भारत जैसे एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं।

शाकाहारी भोजन सबसे बेहतर

बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मांस खाने के प्रश्न पर दलाईलामा ने कहा कि शाकाहारी भोजन सबसे बेहतर है। तिब्बती बौद्ध मठों के रसोईघरों में कई दशक पहले मांस पकाना बंद करवा दिया गया था। तिब्बत में अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित कई इलाकों में सब्जी उगती ही नहीं है, इसलिए वहां पर लोग मजबूरन मांस का सेवन करते हैं। इस कारण के चलते पहले वह भी मांस खाते थे। तिब्बत से भारत आने के बाद उन्होंने वर्ष 1964 में मांस खाना बंद कर दिया, लेकिन वह बीमार हो गए। डॉक्टरों की राय पर अब वह मांस का बहुत कम सेवन करते हैं।

Vijay