कागजी राहतों की बौछार को रोज धो रही है महंगाई की मार : राणा

punjabkesari.in Wednesday, Jul 08, 2020 - 05:16 PM (IST)

हमीरपुर : देश और प्रदेश की राजनीति में निरंतर बढ़ रहे राजनीतिक दखल और दबाव से आम आदमी में तनाव व्याप्त है। आम नागरिक सरकार तक अपनी बात न पहुंचा पा रहा है और न ही उसकी सुनने को कोई राजी है। सत्ता, सत्ता धर्म के खिलाफ मनमानी कर रही है। आर्थिक संकट से जूझ रहे बेरोजगारों के परिवार सरकार की ओर राहत की टकटकी लगाए बैठे हैं, लेकिन सरकार राहत देने की बजाय महामारी व महंगाई के चंगुल में फंसी जनता के लिए नित नई आफत का मसौदा तैयार कर रही है। लॉकडाउन के बाद देश के करोड़ों मजदूर व कामगार गांवों की ओर लौट आए हैं, लेकिन सरकार के पास उनके लिए कोई कारगर योजना जमीन पर हकीकत में नहीं दिख रही है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। 

सरकार की राहतों की कागजी बौछार पर रोज महंगाई की मार पड़ रही है। सरकार की देखादेखी में प्रशासनशाही सर्वशक्तिमान की भूमिका में आम नागरिकों के हितों से रोज खिलवाड़ कर रही है, जिसको लेकर पूरे देश और प्रदेश में आक्रोश फैल रहा है। आलम यह है कि सत्तासीन पार्टी के पास आम नागरिकों के सवालों का ईमानदारी से कोई जवाब नहीं है। कोरी घोषणाओं व जुमलों के साथ कागजी आंकड़ों से जनता को संतुष्ट करवाने का असफल प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि नौकरी खोने के बाद गांवों की ओर लौट चुके बेरोजगारों को उन्हीं के क्षेत्रों में रोजगार मुहैया करवाया जाए। क्योंकि काम मिलने से जहां आम आदमी की जेब में पैसा आएगा वहीं ग्रामीण क्षेत्रों का प्राथमिक मूलभूत विकास भी संभव हो पाएगा।

सत्ता के अहम में विपक्ष की बात को नजरअंदाज करना आम आदमी के हितों से कुठारघात होगा। अतः सरकार को चाहिए कि वह विपक्ष के सुझावों व जनता की शिकायतों को गंभीरता से सुनें समझे व उन पर अमल करें। उन्होंने कहा है कि कोरोना के संकट के बीच नौकरी गंवा चुके प्रदेश के लाखों बेरोजगार लगातार उनसे मदद की गुहार लगा रहे हैं। जिसका सीधा मतलब यह निकल कर आ रहा है कि सरकार की कागजी घोषणाएं जमीन पर कोई असर नहीं दिखा पा रही हैं। चर्चाएं यह भी हैं कि बेलगाम हो चुकी अफसरशाही हकीकत में सरकार की गाईडलाईन को लागू ही नहीं कर रही है। जिस कारण से बेरोजगारी व आर्थिक महामारी में फंसे प्रदेश के लाखों बेरोजगारों को जीवन यापन के लाले पड़ चुके हैं।
 


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Edited By

prashant sharma

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