क्या विधानसभा चुनाव हारे व्यक्ति को कांग्रेस देगी टिकट?

Monday, Mar 25, 2019 - 10:44 AM (IST)

इंदौरा (अजीज): भाजपा द्वारा कांगड़ा-चम्बा संसदीय क्षेत्र के लिए वरिष्ठ नेता व वर्तमान प्रदेश सरकार में मंत्री किशन कपूर को प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है कि कांग्रेस अब किसे टिकट देगी ? हालांकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा को टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है। लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि विधानसभा चुनावों में सुधीर पहले ही किशन कपूर से हार चुके हैं और किशन कपूर के गद्दी राजपूत समुदाय से संबंध रखना कहीं न कहीं गद्दी वोटबैंक के दृष्टिगत किशन कपूर की राह आसान करेगा।

ऊधर कांग्रेस के पैनल में सुधीर शर्मा के अतिरिक्त चौधरी समुदाय से पवन काजल व गद्दी समुदाय से पूर्व मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी का नाम भी अंतिम तीन में बताया जा रहा है। ऐसे में भरमौरी पर कांग्रेस जहाँ गद्दी वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर सकती है तो वहीं पवन काजल पर ओ.बी.सी. कार्ड खेलकर भी चुनावी रण में नयी चाल चली जा सकती है। हालांकि इस बार भरमौरी भी विधानसभा चुनाव में हार का मुँह देख चुके हैं।

लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो किशन कपूर सशक्त प्रत्याशी नज़र आ रहे हैं। क्योंकि भाजपा ने डोर-टू-डोर और धरातल पर जो मेहनत की है, कहीं न कहीं कांग्रेस उसमें पीछे रही है। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो पिछले एक साल से कांग्रेस की मासिक अथवा त्रैमासिक बैठकें तक नहीं हुई हैं और बड़े नेता अधिकांशतः वाकयुद्ध में मशगूल रहे हैं। जबकि प्रदेश में सत्तासीन दल का लाभ तो भाजपा को मिलेगा ही, साथ ही वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व अन्य मंत्रियों में से कम से कम तीन के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में दो-दो दौरे कर जनता के विश्वास को जीतने का जो प्रयास किया गया है, उसका लाभ भी कहीं न कहीं भाजपा को मिलेगा। कांग्रेस का संगठन भी धरातल पर काम करने से कासिर सा रहा है।

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर भाजपा संगठन ने जीतने के बावजूद भी कभी रैलियों तो कभी सम्मेलनों के माध्यम से कार्यकर्ताओं में जोश भरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। जबकि कांग्रेस में यह जोश केवल चुनावों के समय ही देखने को मिलेगा। भले ही केंद्र सरकार अथवा निवर्तमान सांसद अपने घोषणापत्र पर खरा उतरने में कुछ हद तक विफल रहे हों, लेकिन कांगड़ा में प्रत्याशी बदलने से यहाँ निवर्तमान सांसद से कथित मोहभंग गौण हो गया है और जिस तरह की परिस्थितियों से देश गुजर रहा है, ऐसे में चिंतन - मनन करने वाले एक वर्ग विशेष को छोड़ दिया जाए तो घोषणापत्र को लेकर न तो कोई बात होगी और न ही उसका कुछ खास फर्क पड़ता दिख रहा है।

हां लेकिन कांगड़ा को छोड़ दें तो जीत का मतांतर व देश में सीटों का अंतर पिछली बार से कम रहने की संभावना है। निश्चित रूप से इस बार नोटा का प्रयोग बढ़ेगा जो जीत के मतांतर को कम करने के अतिरिक्त कोई अन्य छाप छोड़ेगा,ऐसा प्रतीत नहीं होता? बहरहाल देखना यह है कि कांग्रेस कल किसे प्रत्याशी घोषित करती है। फिलहाल दोनों दलों का अपना पक्का वोट अपनी - अपनी जगह खड़ा है, लेकिन फ्लेक्सिबल वोटर पर भाजपा ने अधिक मेहनत की है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन शिमला व मंडी में भाजपा कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है जो भी हो पवन काजल ने थोड़े से समय में कांग्रेस में गहरी पैठ बनाई है और अंतिम तीन में नाम होना इस बात का बड़ा प्रमाण है।

kirti