धारा-118 को कांग्रेस और भाजपा ने बना रखा है सियासत का हथियार

Monday, Jun 17, 2019 - 10:09 AM (IST)

नाहन (अरुण साथी): जब-जब धारा-118 का जिक्र होता है, तब-तब प्रदेश की राजनीति में बवाल मचना शुरू हो जाता है। कांग्रेस व भाजपा ने दशकों से इस धारा को सियासत करने के लिए हथियार बना रखा है। सरकार किसी भी पार्टी की हो, जब भी इस धारा में लोगों को राहत देने का जिक्र होता है तो पलक झपकते ही विरोधी दल आग-बबूला होने लगते हैं। सरकार को हिमाचल को बेच देने के आरोप लगने लगते हैं। यह भी सच है कि सत्ता में आई पार्टियों ने अपने स्वार्थ साधने के लिए धारा-118 को एक तरफ करके गैर-हिमाचलियों को तवज्जो दी है। कितनी ही इस मामलों में फाइलें हैं, जिन्हें क्लीयर करने में देर नहीं लगी। 

राजनीतिक हस्तियां, आला अफसरशाही या फिर बड़े-बड़े बिजनैस आइकन को प्रदेश में जमीनें बेची गईं, बंगले बने और बगीचे खरीदे गए। यह सब लगातार चल रहा है, लेकिन धारा-118 की धार कम करने को कोई सरकार तैयार नहीं है। कुल मिलाकर हिमाचल को दोनों पार्टियों के नेताओं ने बेचा है। उधर, जिला सिरमौर में गठित संघर्ष समिति सरकार से नाउम्मीद हो चुकी है, जो कई वर्षों से राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों के समक्ष जमीन खरीदने के मामले में छूट देने के लिए गुहार लगा चुकी है, लेकिन कुछ नहीं बना। अब हाईकोर्ट में याचिका दायर की जाएगी। हाईकोर्ट से उम्मीद है कि वो जनहित को देखते हुए गैर-कृषक हिमाचलियों को राहत देगा।

धारा-118 में यह है प्रावधान

70 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की कृषि भूमि को बचाने व किसानों के हित में भू-अधिनियम 1972 की धारा-118 को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया। धारा को इतना सख्त बनाया गया कि प्रदेश में रहने वाले गैर कृषक हिमाचलियों को भी राज्य में कृषि व रिहायश के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है। धारा-118 के तहत राज्य में उद्योग लगाने वाले उद्योगपतियों को को भी अनुमति लेनी होती है। जबकि गैर हिमाचली भूमि नहीं खरीद सकता। केवल फ्लेट खरीदने की अनुमति धारा-118 गैर हिमाचलियों को प्रदान करती है। या फिर विशेष परिस्थितियों में शैक्षणिक व स्वास्थ्य संस्थान बाहरी लोगों द्वारा खोलने के लिए अनुमति मिल सकती है।

सरकार यह तो बताए जमीन बेच कौन रहा है

धारा-118 पर जब-जब बवाल मचता है, तब-तब सरकारें पल्ला झाड़ देती हैं और जवाब मिलता है कि धारा-118 से कोई छोड़छाड़ नहीं होगी। सवाल यह भी है कि हिमाचल को कौन बेच रहा है। केवल हिमाचली कृषक जिसके पास जमीन है, वो कृषक ही है, जिसको जमीन बेचने व खरीदने का अधिकार है। प्रदेश की कृषि भूमि बचाने के लिए दशकों पहले हिमाचल निर्माता डा. वाई.एस. परमार ने धारा-118 को लागू किया। गैर-कृषकों के पास तो इतनी भूमि ही नहीं है कि वो बेच सकें। उनको तो दशकों से जमीन के एक टुकड़े की दरकार है। लाखों गैर-कृषक प्रदेश के विकास और समृद्धि में बराबर के भागीदार रहे हैं। टैक्स अदा करते हैं। वोट देते हैं। इसके बावजूद आज भी यह तबका जमीन खरीदने के लिए सरकार के रहमोकरम पर है। 

लाखों गैर-कृषकों को क्यों नहीं दी राहत

सवाल उठता है कि इस ओर सरकार औद्योगिक निवेश के लिए धारा-118 में छूट देने का ऐलान करती रही है। गैर-हिमचालियों को अपना बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन हिमाचल में पुश्त दर पुश्त रहने वाले कई लाख गैर-कृषक हिमाचलियों पर धारा-118 का शिकंजा आज भी कसा है। सरकार की बिना इजाजत के ये लोग जमीन का एक टुकड़ा नहीं खरीद सकते। अगर संविधान के नजरिए से देखा जाए तो यह धारा हिमाचलियों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है, खासतौर से गैर-कृषक हिमाचलियों के।

Ekta