20 साल से यह शख्स हर वर्ष मुफ्त में बांट रहा कॉफी के पौधे (Watch Pics)

Friday, Jul 12, 2019 - 03:22 PM (IST)

बिलासपुर: पिछले 20 सालों से वाणिज्यिक फसलों के शोध व प्रसार से सामाजिक उत्थान में लगे डॉ विक्रम शर्मा ने इस साल भी करीब कॉफी के एक लाख पौधे खुद पैदा करके उन्हें मुफ्त में बांटने का निर्णय लिया है। बता दें कि वह पेशे से रसायन शास्त्र विज्ञान में डॉक्टर हैं तथा कई रसायन शोध विषयों पर कार्य कर चुके हैं, परन्तु वाणिज्यिक कृषि बागवानी पर विशेष रुचि रखते हुए हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न वाणिज्यिक फसलों पर शोध कर रहे हैं। डॉ शर्मा हिमालयी क्षेत्र में कॉफी उगाने वाले पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने इसका ट्रायल 1999 में अपने घर मंझोटी जिला बिलासपुर में किया था, जो आज एक मिशन के रूप में उभरता जा रहा है। उन्होंने बताया कि 65 प्रतिशत निचला हिमालयी क्षेत्र पृरी तरह से उजाड़ हो चुका है।  

कई वर्षों से मुफ्त पौधों का कर रहा हूं आवंटन 

जंगली जानवरों व आवारा पशुओं के कारण आज हमारे किसान पारम्परिक कृषि को छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं, जिसके कारण हमारे निचले क्षेत्र से पलायन की समस्या दिन व दिन बढ़ती जा रही है। जिसे रोकने के लिए हमे वाणिज्यिक कृषि व बागवानी पर शोध करना होगा, अन्यथा परिणाम घातक होंगे। डॉ विक्रम ने कहा कि निचले हिमालयी क्षेत्र में अभी तक कोई भी अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसल पूर्णतः सफल नहीं हुई न ही इस क्षेत्र के लिए कोई विशेष शोध हुआ जिसके कारण आज हमारे युवा व किसान कृषि बागवानी छोड़ने पर मजबूर हैं। उन्होंने कॉफी के पौधे आवंटन पर कहा कि मैं लगातार कई वर्षों से मुफ्त पौधों का आवंटन कर रहा हूं, परन्तु इसवर्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक लाख से अधिक पौधों के मुफ्त आवंटन का निर्णय लिया है ताकि हमारे किसान व युवा इन्हें रोपित करके अपनी आर्थिकी सुदृढ कर सकें। 

कॉफी एक अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसल

कॉफी एक अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसल है जिसकी विदेशों में अत्याधिक मांग है। भारत वर्ष कुल दुनियां की कॉफी आयात का 24 प्रतिशत निर्यात करता है, जो पिछले कई वर्षों से उत्त्पादन सही न हो पाने से पूरा नहीं किया जा रहा है। बढ़ती मांग को देखते हुए हिमाचल प्रदेश की कॉफी विश्वस्तरीय कॉफ़ी के रूप में विश्वबाजार में अपना आधिपत्य जमा सकती है, जिसका मुख्य कारण यंहा की जलवायु व पर्यावरण के उतार चढ़ाव हैं। हिमाचल की कॉफी विश्व की किसी भी कॉफी के मुकाबले अत्यंत खुशबूदार तथा स्वादिष्ट है जिसकी बाजार में मांग बहुतायत रहेगी। डॉ विक्रम ने बताया कि उन्होंने हिमालयी क्षेत्र के लिए मुख्यतः चन्द्रगिरि व एस-9 कॉफी प्रजाति चुनी है तथा इन्हीं दो प्रजातियों के पौधे लोगों को मुफ्त बाटें जाएंगे। इसके अलावा दालचीनी, एवाकाडो, पिस्ता कोकोआ व अंजीर हिमालयी क्षेत्र में सफलता पूर्वक उगाए जा सकते हैं। 

मोदी सरकार ने शुरू किया विशेष शोध  

हिमालयी क्षेत्र में हींग की पहली पौध के बारे में जिक्र करते हुए डॉ विक्रम ने बताया कि 70 वर्ष आज़ादी के बीतने पर भी पिछली सरकारों ने हींग जैसे मुख्य मसाले को भारत की धरती पर उगाने की एक भी कोशिश नहीं की। परन्तु केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने आते ही उन्होंने इस पर विशेष शोध कार्य शुरू कर दिया। इसकी खोज कश्मीर के ऊपरी दुर्गम क्षेत्रों से करके उसे हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर में वाणिज्यिक उत्त्पादन के ट्रायल के लिए उगाया गया, जो सफलता की तरफ पहला कदम साबित हुआ। डॉ शर्मा ने बताया कि हींग की खपत अकेले भारत वर्ष में विश्व के कुल उत्त्पादन की 40 प्रतिशत है परन्तु उत्त्पादन नगण्य है। उन्होंने वाणिज्यिक कृषि व बागवानी पर बताते हुए कहा कि प्रदेश सरकार को वाणिज्यिक कृषि को एक उधोग का दर्जा दे देना चाहिए। वाणिज्यिक उत्त्पादों के लिए हिमाचल सरकार को एक विशेष अन्तराष्ट्रीय विक्रय पोर्टल शुरू करना चाहिए जिसमें स्थानीय उत्तपादक अपना उत्त्पाद डाल कर ऑनलाइन बेच सकें। 

किसानों व बागवानों को खरीदारों से मिलेगा सीधा जुड़ने का मौका

डॉ शर्मा ने कहा कि इससे किसानों व बागवानों को खरीदारों से सीधा जुड़ने का मौका मिलेगा तथा बिचौलियों से निजात मिलेगी। उन्होंने कहा कि हिमाचल का परिवेश व पर्यावरण प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिए नहीं है। यहां मात्र पर्यावरण मित्र उद्योग ही स्थापित किए जाने चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण व परिवेश के साथ सांस्कृतिक धरोहर समाजिक प्रदूषण से भी बची रहे। डॉ शर्मा ने सभी प्रदेश व देशवासिओं से अनुरोध किया कि हर भारतीय अपने अच्छे पर्यावरणीय भविष्य के लिए कम से कम 10 पौधे रोपित करें जिसमे एक पीपल जरूरी होना चाहिए। उन्होंने बताया कि ये सारा कार्यक्रम 'नरेंद्र मोदी पर्यावरण सरंक्षण व पौधरोपण मिशन 2019' के तहत किया जा रहा है जिसका संचालन मात्र कृषि बागवानी से कृषक व युवा आर्थिक स्वावलम्बन के लिए किया जा रहा है। 

Ekta