पालमपुर की Tea के बाद अब लीजिए बिलासपुर की Coffee का आनंद

Tuesday, May 28, 2019 - 12:53 PM (IST)

बिलासपुर (मुकेश): हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में एक प्राकृतिक रूप से समृद्ध हिल स्टेशन और नगरपालिका है, जो कि चाय बागानों और देवदार के जंगलों से घिरा है। पालमपुर उत्तर-पश्चिम भारत की चाय की राजधानी है। लेकिन इसके साथ-साथ अब दक्षिण भारत में पैदा होने वाली कॉफी की फसल हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में भी लहलहा रही है। अब पालमपुर की चाय के साथ-साथ आप बिलासपुर की कॉफी का भी आनंद उठा सकते हैं। जहां पर हिमाचल के किसान बंदरों, जंगली जानवरों के नुकसान के कारण खेतीबाड़ी छोड़ चुके हैं। करीब 65 प्रतिशत प्रदेश की भूमि बंजर हो चुकी है, जंगली जानवरों व आवारा पशुओं के कहर से प्रदेश के किसान बेहाल हैं। उनके पास सिवाए पारंपरिक कृषि के अलावा कोई आय को बढ़ाने का विकल्प भी नहीं है। अगर आज की परिस्थिति पर नजर डालें तो पिछले कई वर्षों से प्रदेश सरकारों ने केवल एक योजनाओं पर ही काम किया। 

धरातल पर कोई भी योजना किसानों की मदद नहीं कर पाई जिसके कारण आज प्रदेश के किसान कृषि बागवानी छोड़ने को मजबूर हो गए। उनके लिए कॉफी की फसल वरदान सिद्ध हो रही है। बिलासपुर के घुमारवीं उपमंडल की पंचायत मराहणा के गांव मजौटी के रहने वाले डा. विक्रम शर्मा अपने घर में कॉफी का उत्पादन कर दूसरों के लिए मिसाल और युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरे हैं। डा. शर्मा ने खुद कॉफी के पौधों को उगाने के साथ हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों के लिए मुफ्त में पौधे बांटकर किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने का बीड़ा उठाया। आज क्षेत्र के विभिन्न किसानों ने उत्पादन शुरू किया गया है।

हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक व पर्यावरण परिस्थितियों को देखते हुए पिछले 17 वर्षों से वाणिज्यिक कृषि बागवानी के शोध व प्रसार में लगे डॉ विक्रम शर्मा ने बताया कि अब उन्होंने प्रदेश की बंजर भूमि को युवाओं की समृद्धि से जोड़ने का बीड़ा उठा लिया है। डॉ विक्रम ने कहा कि उन्होंने 17 वर्ष पहले हिमाचल के निचले क्षेत्रों में कॉफी जैसी अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसल का सफल ट्रायल भी किया था, जिसके लिए भारत सरकार के प्रधानमंत्री ने उन्हें कॉफी बोर्ड के निदेशक मंडल में पहली बार उत्तरी भारत से प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है, परन्तु इसके बावजूद पिछली कांग्रेस की सरकार ने कॉफी जैसी महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसल पर ध्यान देना उचित नहीं समझा।
 

Ekta