बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं निजी स्कूल, हादसों से नहीं ले रहे सबक

Monday, Jun 19, 2017 - 05:29 PM (IST)

चम्बा : जिला चम्बा में दिनोंदिन निजी स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जहां कुछ निजी स्कूल अपनी शिक्षा व्यवस्था के दम पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं तो कुछ स्कूलों की स्थिति ऊंची दुकान फिका पकवान की बनी हुई है। इस स्थिति में सबसे अधिक ङ्क्षचता की बात यह है कि कुछ स्कूल पैसे कमाने के चक्कर में बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं तो कुछ स्कूल सी.बी.एस.ई. होने का दम तो भरते हैं लेकिन वे सी.बी.एस.ई. की गाइड लाइन को पूरा नहीं करते हैं। ऐसे स्कूलों के पंजीकरण की वैधता कैसे बरकरार रहती है और इन स्कूलों की आखिर कोई जवाबदेही कोई क्यों सुनिश्चित नहीं करता है यह एक बहुत बड़ा प्रश्न व्यवस्था, प्रशासन, पुलिस व परिवहन विभाग पर लग रहा है। क्या इन सभी को देश के भविष्य को खतरे में डालने वाले व बच्चों की जान से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का बोध नहीं है या फिर कोई ऐसी मजबूरी है जो कि उपरोक्त विभागों के हाथ बंधे हुए हैं। 



भेड़-बकरियों की तरह ठूसे जा रहे बच्चे
जिला चम्बा के ज्यादातर निजी स्कूल अपने यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को घर से स्कूल व स्कूल से घर लाने ले जाने की सुविधा मुहैया करवाने का दम भरते हंै। इस सुविधा के नाम पर ये स्कूल हर माह बच्चों के अभिभावकों से मोटी कमाई वसूलते हैं लेकिन अफसोस की बात है पैसा लेने के बावजूद वे अधिक कमाई व कम खर्च की नीति को ध्यान में रखते हुए अपने यहां पढऩे वाले बच्चों को गाडिय़ों में भेड़-बकरियों की तरह ठूस-ठूस कर भरते हंै। किसी गाड़ी में अगर 20 लोगों के बैठने की क्षमता निर्धारित की गई है तो उक्त गाड़ी से 40 से 50 बच्चों को भरा हुआ देखा जा सकता है। 



बस हादसे ने खोली पोल
विशेष परमिट नहीं लेकर सरकार को चूना लगाने के इस खेल का पर्दाफाश कुछ सप्ताह पूर्व जिला मुख्यालय में उस समय हुआ जब बनीखेत के एक निजी स्कूल की गाडिय़ां विशेष रूट परमिट लिए बिना ही स्कूल के बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण करवा रही थी। जब चामुंडा के पास उक्त स्कूल की एक गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हुई तब क्षेत्रीय परिवहन विभाग की जांच में यह पता चला कि उक्त स्कूल बिना रूट परमिट के अपनी गाडिय़ों को घूमा रहा था। 

सरकारी खजाने को लगाया जा रहा चूना
जिला में मौजूद कई निजी स्कूल अपने यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को आए दिन शैक्षणिक भ्रमण के नाम पर भारी भरकम कमाई कर रहे हैं। कुछ किलोमीटर की दूरी तय करने के नाम पर बच्चों से भारी पैसे वसूले जाते हैं लेकिन शैक्षणिक भ्रमण के जाने हेतु क्षेत्रीय परिवहन विभाग से ऐसे विशेष रूट परमिट नहीं लेते हैं। क्योंकि इसके लिए परिवहन विभाग को पैसे देने पड़ते हैं, ऐसे में बच्चों से पैसे लेकर निजी स्कूल अपने खाते में डाल लेते हैं और बिना विशेष रूट परमिट ले लिए गाडिय़ों को दौड़ा रहे हैं। 

मॉर्डन जमाने में अभिभावक भी धृतराष्ट्र बने
आज के दौर में निजी स्कूलों को मनमानी करने की छूट देने के लिए काफी हद तक बच्चों के अभिभावक भी जिम्मेदार हैं। क्योंकि हर माह वे अपने बच्चे को बढिय़ा अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा दिलवाने को अपने सोशल स्टेट्स के साथ जोड़ कर देखते हंै। इसी के चलते वे हर माह निजी स्कूलों को अपने खून-पसीने की मोटी कमाई खुशी-खुशी से दे देते हैं लेकिन वे अपने बच्चों को किसी गाड़ी में किस स्थिति में लाया जा रहा है इसके बारे में स्कूल प्रबंधन से जबावदेही करने से गुरेज करते हंै। इसमें कोई दोराय नहीं है कि जब कोई अप्रिय घटना घटती है तो ऐसे अभिभावकों को अपने इसी गलती के लिए पछताना पड़ता है। 

श्रम कानूनों की उड़ाई जा रही धज्जियां छ्वस्रह्यद्म
जिला चम्बा के कई निजी स्कूलों में तैनात अध्यापकों को वेतन के नाम पर एक मजदूर से भी कम वेतन दिया जा रहा है, ऐसे में कुछ निजी स्कूल श्रम कानूनों को भी नजर अंदाज किए हुए हैं। नि:सन्देह बेरोजगारी के इस दौर का कुछ स्कूल अपने फायदे के लिए पूरी तरह से इस मौके इस्तेमाल कर रहे हैं तो कुछ स्कूल अपने यहां तैनात अध्यापकों को वेतन कुछ ओर देते हैं और कागजों पर कुछ ओर दर्ज करते हंै। 


यह बात ध्यान में लाई गई है जिसके चलते इस बारे में शीघ्र सभी संबंधित विभागों को प्रभावी कदम उठाने के लिए कड़े निर्देश जारी किए जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा के साथ किसी भी प्रकार का समझौता हरगिज बर्दाश्त नहीं होगा। जहां तक निजी स्कूलों से जुड़ी अन्य समस्याएं हैं तो अगर अभिभावक जिला प्रशासन के ध्यान में अपनी शिकायतें लाते हैं तो नि:सन्देह उनकी शिकायतों पर संबंधित निजी स्कूलों की जवाबदेही तय की जाएगी।     
-सुदेश मोख्टा डी.सी.चम्बा