यहां राक्षस से शहर को बचाने के लिए निकाली विशाल मशाल

Sunday, Jan 15, 2017 - 01:40 PM (IST)

चंबा: हिमाचल के चंबा को राक्षस से पूरा साल दूर रखने के लिए शुक्रवार की आधी रात को विशाल मशाल (मुश्यारा) निकाली गई जोकि नगर के चिन्हित मोहल्लों में मौजूद प्राचीन मढ़ियों में पूजन प्रक्रिया के बाद राजमढ़ी पहुंची, जहां पहुंचने पर यह परंपरा पूरी हुई। ऐसा माना जाता है कि किसी समय चंबा नगर में राक्षस का वास था जोकि हर वर्ष किसी न किसी मनुष्य की बलि लेता था। जब अपनी प्रजा से इस शैतान से निजात दिलाने को तत्कालीन राजा ने उपाय पूछा तो यह बताया गया कि अगर लोग अपना खून स्वयं शैतान को पेश करें तो वह मनुष्य की बलि नहीं लेगा। इस पर राजा ने चंबा नगर के कुछ मोहल्लों में मढ़ियों की स्थापना की जोकि आधा दिसम्बर से जनवरी के आधा माह तक यानी एक माह तक हर शाम को जलाई जाती हैं। 


शहर को बचाने के लिए निकाली विशाल मशाल
लोहड़ी की रात को राजमढ़ी जोकि सुराड़ा में मौजूद है, वहां से आधी रात को राज मशाल निकली जोकि विभिन्न मोहल्लों में मौजूद मढ़ियों में जाकर अपनी उपस्थिति का एहसास करवाती है। राज मशाल के बाद बजीर मशाल निकलती जोकि राज मशाल का अनुसरण करने का प्रयास करती है लेकिन उसे ऐसा नहीं करने देने का जिम्मा संबंधित मढ़ी यानी उस मोहल्ले के लोगों पर रहता था। ऐसे में बजीर की मशाल को रोकने के लिए दोनों गुटों में झड़प होती है और लोगों के चोटिल होने पर खून बहता है। इस खून के बहने की प्रक्रिया को शैतान को खून मिलने के साथ जोड़ा जाता है। 


सदियों से चली आ रही प्राचीन परंपरा का आज भी किया जाता है निर्वहन
सदियों से चली आ रही इस प्राचीन परंपरा का आज भी निर्वहन किया जाता है। इसी के चलते शुक्रवार की आधी रात को राज मशाल निकाली, जिसने नगर में मौजूद सभी मढ़ियों की परिक्रमा की। इस मौके पर जहां पूरी रात मढ़ियों में गीत-संगीत चलता रहा तो साथ ही आधी रात तक लोग इस परंपरा के निर्वहन का साक्षी बनने के लिए जागते रहे। बदलते समय का इस परंपरा पर यह असर देखने को मिला है कि अब लड़ाई-झगड़ा बेहद कम हो गया है लेकिन इस परंपरा की आत्मा यानी जनकल्याण व जनता की सुरक्षा आज भी जिंदा है, जिसके चलते ही इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है। शुक्रवार को इस परंपरा का निर्वहन शांतिपूर्वक हो गया।