लाहौल में हालड़ा उत्सव की धूम, जलती मशालों से भगाई बुरी आत्माएं

Wednesday, Jan 23, 2019 - 11:55 AM (IST)

कुल्लू (मनमिंदर): देवी-देवताओं और पुण्य आत्माओं को समर्पित हालड़ा उत्सव इस वर्ष भी तिनन घाटी के लोगों द्वारा मोहल में धार्मिक श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पूरी दुनिया से अलग थलग पड़े शीत मरुस्थलीय कबायली भूमि लाहौल में आजकल केवल हेलिकॉप्टर से ही पहुंचा जा सकता है। ऐसी विषम हालात से निजात पाने के लिए यहां के कबायली लोगों ने कई तीज त्योहारों और उत्सवों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक है यह हालड़ा उत्सव। यहां की भौगोलिक परिस्थिति और प्रतिकूल जलवायु के कारण गाहर, तिनन, तोद तथा पटन की घाटियों में अलग-अलग त्योहारों और उत्सवों को अपने-अपने ढंग से मनाया जा रहा है।

हर घाटी में अलग-अलग मनाया जा रहा हालड़ा उत्सव

लाहौल की सभी घाटियों में यह उत्सव अलग-अलग दिन मनाया गया। तिनन, तौद तथा गाहर घाटी में लामा ग्रथों के द्वारा गणित लगाकर इस शुभ पर्व की तिथि निर्धारित की जबकि पटन घाटी में चंद्रमा के घटने व बढ़ने के पक्ष को तरजीह दी गई। हालड़ा के दिन समस्त घाटियों के गांव वासियों ने निर्धारित समय पर कुलज देवी-देवताओं के पूजा-पाठ के पश्चात देवदार या जूनिपर की लकड़ी को तकरीबन पांच फुट लंबे टुकड़ों में काट आपस में बांध कर हालड़ा का रुप दिया। तिनन गाहर, रांगलो और तोद घाटी के लोगों की प्रह्यजलित हालड़ा को घरों से बाहर निकालने की विधि पटन घाटी से थोड़ी भिन्न है। इन क्षेत्रों के लोग प्रह्यजलित हालड़ा को घर से बाहर आधी रात में केवल एक बार निकाला गया। जबकि पटन में तीन प्रकार के हालड़ा सद् हालड़ा (देवी-देवताओं को समर्पित), पितर कोच हालड़ा (पुण्य आत्माओं को समर्पित) और नम हालड़ा को गांव के चौपाल में निकाला जा रहा है। जहां पर आग का बड़ा अलाव बनाकर और इसके इर्द-गिर्द लोगों ने छांग और हरक की मस्ती में झूमते-नाचते व एक दूसरे पर फब्तियां कसते हुए विसर्जन किया जाएगा। स्थानीय निवासी मंगल चन्द मनेपा ने बताया कि इस उत्सव से घाटी में नया साल शुरू हो गया है और जलती मशालों से भूत-प्रेतों को भगाया गया।



 

Ekta