एक वक्त था जब खाने के पड़ते थे लाले, नूरां सिस्टर्ज ने अपने जीवन से जुड़ी कई यादें की सांझा

Monday, Feb 20, 2017 - 08:37 PM (IST)

बड़सर : एक वक्त ऐसा था कि कई-कई दिन तक खाने के लाले पड़े रहते थे, मगर वर्षों की मेहनत ऐसी रंग लाई कि आज न केवल घोर गरीबी से निजात मिली है, बल्कि नाम, इज्जत व शौहरत की भी कोई कमी नहीं है। यह बात पंजाब केसरी से खास बातचीत में दंगल, सुल्तान व हाईवे जैसे फिल्मों में हिट गानों से धमाल मचाने वाली प्रसिद्ध सूफी गायिका ज्योति नूरां व सुल्ताना नूरां ने कही। कार्यक्रम प्रस्तुत करने बाबा बालक नाथ जी के पवित्र धाम दियोटसिद्ध में होटल अशोका रिजैंसी पहुंची नूरां सिस्टर्ज ने अपने जीवन से जुड़ी कई यादें सांझी कीं। 

आने वाली पीढिय़ां भी सूफी गायिकी का दामन न छोड़ें : नूरां सिस्टर्ज 
नूरां सिस्टर्ज और उनके पिता गुलशन मीर ने बताया कि हमारे घर में गरीबी इस कदर थी कि कई-कई दिन तक खाने को एक दाना नसीब नहीं होता था, लेकिन हमने आस नहीं छोड़ी और गुरबत के अंधेरे दौर में सूफी गायिकी की अलख को जगाए रखा, क्योंकि बीबी नूरां का सपना था कि उनकी आने वाली पीढिय़ां भी सूफी गायिकी का दामन न छोड़ें। यही वजह थी कि बिना किसी साधन और आय के स्रोत के हमने भूखे रहकर भी सूफी गायकी को अपने साथ जोड़े रखा और आज हमें उस मेहनत का सिला मिला है कि नूरां सिस्टर्ज न केवल देश के विभिन्न हिस्सों, बल्कि विदेशों में भी अपने सफल स्टेज शो करके शौहरत हासिल कर रही हैं। 

‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान काबिलेतारीफ
नूरां सिस्टर्ज के पिता गुलशन मीर ने बताया कि आज केंद्र व राज्य सरकारों का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम काबिलेतारीफ है, क्योंकि जो नाम बेटियां रोशन कर देती हैं, वह कई दफा बेटे भी नहीं कर पाते हैं। मीर का कहना है कि उनकी 4 बेटियां हैं तथा उन्होंने घोर गरीबी के दौर में भी अपनी बेटियों को काबिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तथा उसी का नतीजा है कि उनकी काबिल बेटियां नूरां सिस्टर्ज अपने हुनर से पूरे खानदान का नाम रोशन कर रही हैं। ज्योति व सुल्ताना ने कहा कि हमने 5 साल की उम्र से गाना शुरू किया था तथा आज हमने बॉलीवुड की दंगल, सुल्तान व हाईवे सहित कई फिल्मों में हिट गाने गाए हैं।