अरबों के खजाने वाली भारत की यह झील बन रही लोगों की चिंता का कारण

Monday, May 08, 2017 - 11:44 AM (IST)

चैलचोक: समुद्र तल से 3334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, चारों ओर से देवदार, रई और तोष के विशालकाय वृक्षों से घिरी, 650 मीटर के दायरे में फैली, सैंकड़ों साल पुरानी, लोगों की आस्था का प्रतीक कमरूनाग देव मंदिर की झील का कम हो रहा आकार और बढ़ रही गाद लोगों की चिंता का कारण बन रही है। सरोआ, रोहांडा व ज्यूणी घाटी से पैदल चल रहे पर्यटकों व श्रद्धालुओं के मंदिर पहुंचते ही झील थकान को दूर कर सबका मनमोह लेती है लेकिन झील की ऐसी स्थिति के कारण लोग चिंतित हैं। 


आषाढ़ संक्रांति के दिन झील में चढ़ाए जाते हैं सिक्के
आषाढ़ संक्रांति के दिन लगने वाले बड़ा देव कमरूनाग के मेले के दौरान श्रद्धालु व मंदिर कमेटी लाखों रुपए के सिक्कों व मन्नत पूरी होने पर आभूषणों को इस झील में फैंकते हैं। इस झील की गहराई को आज दिन तक कोई नहीं माप पाया है लेकिन यहां प्रतिवर्ष बढ़ रही गाद इसका आकार कम कर रही है। 


आधी-आधी झील की करते हैं सफाई
झील की सबसे खास बात यह है कि यह सुकेत व मंडी रियासतों की आधी-आधी है। दोनों रियासतों के लोग झील की सफाई मिलकर हर साल श्रावण मास में करते हैं। आधी झील की सफाई सुकेत रियासत के लोग व आधी झील की सफाई मंडी रियासत के लोग करते हैं। झील के एक ओर बढ़ रही गाद इसके पानी को भी हर वर्ष कम कर रही है। दोनों रियासतों के लोग इसकी सफाई के दौरान बढ़ रही गाद को बाहर निकालते हैं। लेकिन तकनीकी तौर पर व संसाधनों की कमी की वजह से पूरी गाद नहीं निकाल पाते हैं। झील को बचाने के लिए पूरी गाद को बाहर निकालना बहुत जरूरी हो गया है।