भितरघात और बगावत के बावजूद पार्टी के प्रति प्रत्याशी दिखा रहे निष्ठा

Thursday, Nov 23, 2017 - 09:38 AM (IST)

कुल्लू (शम्भू प्रकाश): सियासत का खेल भी निराला है। कब कौन किस खेमे में चला जाए और कब कौन एक सियासी दल का चोला उतारकर दूसरे सियासी दल का चोला धारण कर ले, ऐसी सियासी घटनाओं से उसी समय साक्षात्कार के साथ-साथ समीकरण भी बदलते हैं। पहले जनसभा एक साथ गरजने वाले चुनावी बेला पर एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलते हैं। स्थिति रोचक तब होती है जब अपने ही अपनों के खिलाफ मोर्चा खोलकर किए धरे पर पानी फेरने के लिए आमादा रहते हैं। कोई खुलेआम बगावत करके मोर्चा खोलते हैं तो कोई अंदरखाते पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ डटकर कार्य करके अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए जोर आजमाइश करते हैं। 


बगावत और भितरघात करने वाले कई लोग पार्टी के मसले पर पार्टी के प्रति निष्ठावान
हिमाचल में हुए विधानसभा चुनाव में भी कइयों ने पार्टी से बगावत कर अपने ही सियासी दल के प्रत्याशी का खेल बिगाड़ने की कोशिश की तो किसी ने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करके विभीषण की भूमिका में लंका ढहाने का प्रयास किया। बगावत और भितरघात करने वालों की विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी और मंडलों व ब्लाकों के पदाधिकारी सूची बना रहे हैं। ऐसे लोगों को पार्टी से निष्कासित करने के लिए भी मंडलों और ब्लाकों ने प्रस्ताव पारित कर रखे हैं। प्रस्ताव पारित करने वाले मंडलों और ब्लाकों के पदाधिकारी तथा पार्टी प्रत्याशी तब हैरत में पड़ रहे हैं जब वही लोग धूमल और वीरभद्र सिंह के दरबार में हाजरी भर रहे हैं, जिन्हें निष्कासित करने की तैयारियां हो रही है। ऐसी स्थिति में कई मंडलों और ब्लाकों के पदाधिकारी व प्रत्याशी असमंजस की स्थिति में पड़कर ऐसे लोगों की सूची को दबाकर रखने के लिए विवश हो गए हैं। बगावत और भितरघात करने वाले कई लोग पार्टी के मसले पर पार्टी के प्रति निष्ठावान नजर आ रहे हैं। 


भाजपा से बगावत करने वालों ने धूमल का नाम लिया
कांग्रेस से बगावत करने वाले कइयों से जब पूछा गया कि जीतने के बाद किसे समर्थन देंगे तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि हम वीरभद्र के साथ थे और रहेंगे। इसी तरह भाजपा से बगावत करने वालों ने धूमल का नाम लिया। बगावत और भितरघात करने वालों की मंशा अपनी पार्टी के प्रत्याशी को किसी भी तरह जीत दर्ज करने से रोकना रही हो लेकिन सरकार उन्हीं के सियासी दल की बने यह उनकी दिली ख्वाहिश भी है। उनका एकमात्र मकसद यही रहा कि हमारा प्रत्याशी हारे लेकिन सरकार हमारी बने और सी.एम. भी हमारे ही हों। हालांकि प्रत्याशियों की किस्मत स्ट्रांग रूम में रखी ई.वी.एम. में कैद है लेकिन भितरघात और बगावत करने वाले धूमल और वीरभद्र के दरबार में हाजिरी भरते हुए बधाई देने में जुटे हुए हैं। हिमाचल में विधानसभा पहुंचने वाले 68 लोगों में कितने भाजपा, कितने कांग्रेस, कितने आजाद और अन्य उम्मीदवार होंगे, यह देखना होगा। सरकार बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जोड़-तोड़ की जरूरत पड़ेगी या किसी सियासी दल को स्पष्ट बहुमत मिलेगा, यह जनादेश का पिटारा खुलने के बाद तय होगा। जनता किसके सिर पर ताज सजाएगी और किससे ताज छीनेगी, इस फैसले का सभी को इंतजार है। 


अंदरखाते हो रही काली भेड़ों की शिनाख्त 
इधर, कई विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों और मंडलों व ब्लाक पदाधिकारियों की मुश्किलें तब बढ़ रही हैं जब वे भावी मुख्यमंत्रियों के समक्ष बागियों और भितरघातियों को हाजरी भरते हुए देख रहे हैं, ऐसे में उनकी स्थिति क्या करें क्या न करें जैसी हो गई है। कइयों ने तो फिलहाल 18 दिसम्बर तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का मन भी बनाया है, वहीं खेमेबंदी की आड़ में भी कइयों के नपने के आसार हैं तो कइयों की प्रत्याशी के जीत जाने की स्थिति में किस्मत भी खुल सकती है। जीत की स्थिति में खुशी के बीच कई बार किसी के निष्कासन की प्रक्रिया पर पूर्णविराम भी लग सकता है। अंदरखाते भाजपा और कांग्रेस में काली भेड़ों की शिनाख्त की प्रक्रिया जारी है।