B.Ed और TET पास दिव्यांग सड़क किनारे बेच रहा भुट्टे, जानिए क्या है वजह

Monday, Aug 12, 2019 - 03:21 PM (IST)

जोल: उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब जगह-जगह इंटरव्यू देकर नौकरी नहीं मिली तो आखिरकार एक दिव्यांग को भुट्टे (मक्की) बेचकर अपना तथा परिवार का पालन-पोषण करना पड़ रहा है। सोचा था कि बीएड की परीक्षा पास करने के बाद नौकरी मिलेगी लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद एक और एलिजिबिलिटी टैस्ट (टैट) की परीक्षा भी पास कर ली लेकिन उसके बाद भी नौकरी हासिल न हुई तो उपमंडल अम्ब के तहत ग्राम पंचायत चुरूड़ू के शशिपाल को परिवार के पालन-पोषण के लिए सड़क किनारे भुट्टे बेचने के अतिरिक्त कोई राह दिखाई नहीं दी। जगह-जगह नौकरी के लिए भटका शशिपाल कहता है कि वह न जाने कितनी बार इंटरव्यू देने के लिए शिमला गया। बीएड के बाद टैट की परीक्षा भी पास की।

2 वर्ष की आयु में हुआ था पोलियो का शिकार

अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित शशिपाल उस समय महज 2 वर्ष का था जब पोलियो ने उसे अपना शिकार बना लिया। पढ़ाई में अव्वल रहने वाले शशिपाल को परिजनों ने संसाधन न होने के बावजूद उच्च शिक्षा देने का फैसला किया। दिव्यांग शशिपाल एक के बाद एक परीक्षा पास करता चला गया। उसे उम्मीद थी कि शिक्षा ग्रहण करने के बाद उसे नौकरी मिल जाएगी, जिससे पूरे परिवार का जीवन यापन हो जाएगा लेकिन शशिपाल की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया। वह लगातार एक के बाद एक साक्षात्कार देता गया परन्तु उसकी पुकार कहीं सुनी नहीं गई। शशिपाल कहता है कि दिव्यांग कोटे की वेटिंग काफी अधिक है, ऐसे में रोजगार की उम्मीद अब उसे नहीं बची है।

बैच वाइज भर्ती का कोटा किया कम

सड़क किनारे भुट्टे बेचने वाला शशिपाल कहता है कि हिमाचल में चोर दरवाजे से नौकरियां दी जा रही हैं। कभी एसएमसी तो कभी पीटीए तो कभी और माध्यम बनाकर टीचर भर्ती किए जा रहे हैं। इस वजह से बैच वाइज भर्ती का कोटा ही कम कर दिया गया है। वह कई बार लिखित परीक्षा भी दे चुका है लेकिन इंटरव्यू में उसे बाहर कर दिया जाता रहा है। जब उसे हर जगह असफलता मिली तो परिवार का पालन-पोषण करने के लिए भुट्टे बेचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा।

शिक्षा नीति में हो बदलाव

सवाल शिक्षा नीति पर भी हैं। आखिर बीए, एमए और बीएड क्यों करवाई जा रही है। क्या यह समय और पैसे की बर्बादी नहीं है। शिक्षा नीति में भी बदलाव की आवश्यकता है। ऐसी शिक्षा नीति बननी चाहिए जो रोजगारोन्मुख हो। जगह-जगह कालेज खोलकर स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्रियां देकर क्यों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि शिक्षा ही ऐसी दी जाए, जिससे युवा सीधे रोजगार से जुड़ सकें। कालेजों में बी.ए. व एमए करने वाले छात्रों की तादाद काफी अधिक है लेकिन सवाल यह है कि इन डिग्रियों को लेकर ये छात्र क्या करेंगे।

Vijay