धवाला बोले- हिमाचल को मालामाल कर सारा कर्ज मिटा सकता है खैर

Thursday, Sep 12, 2019 - 10:13 AM (IST)

धर्मशाला (सौरभ सूद): हिमाचल के 5 जिलों में फैले खैर के विशाल जंगल करीब 50 हजार करोड़ के कर्ज में डूबे प्रदेश को मालामाल कर कर्ज के जाल से बाहर निकाल सकते हैं। सरकार यदि खैर के पेड़ों की नीलामी करे तो न केवल प्रदेश का आर्थिक संकट दूर हो जाएगा, बल्कि सरकारी खजाने में धन की कोई कमी नहीं रहेगी। राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष रमेश चंद धवाला ने पंजाब केसरी से खास बातचीत में कहा कि वह बीते 2 साल से सूबे में खैर कटान पर लगे प्रतिबंध का मामला सरकार से उठा रहे हैं। लगातार 5 विधानसभा सत्रों में उन्होंने खैर की नीलामी को लेकर सदन का ध्यान खींचा है, लेकिन प्रदेश को आर्खिक तौर पर मजबूत करने के लिए उनके सुझाए इस फार्मूले पर अमल होना बाकी है।

धवाला ने कहा कि इस समय 5 जिलों कांगड़ा, चम्बा, हमीरपुर, ऊना और बिलासपुर में खैर के अथाह जंगल हैं। इन जंगलों में लाखों पेड़ लगे हैं, लेकिन उचित योजना के अभाव में कई पेड़ या तो खोखले या टूटकर गिर चुके हैं। वन विभाग इनकी नीलामी तो करवाता है, लेकिन फिर साल भर इन्हें जंगलों से उठाया नहीं जाता। इस कारण गर्मियों में आग की घटनाओं में यह बेशकीमती संपदा राख हो जाती है। उन्होंने कहा कि सरकारी सुस्ती का लाभ उठाकर वन माफिया रात के अंधेरे में खैर के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर करोड़ों कमा रहे हैं। इस अवैध कटान को रोकने की जरूरत है। 

यह है धवाला का फार्मूला

रमेश धवाला कहते हैं कि करीब 4 दशक पहले खैर कटान पर कोर्ट ने पाबंदी लगाई थी। 10 से 12 फुट तक लंबे खैर के पेड़ की आयु करीब 20 से 25 साल होती है। इसके बाद खैर सडऩे लगता है और प्रयोग के लायक नहीं रहता। वर्तमान में खैर की बाजार कीमत 3 हजार रुपए प्रति फुट या 8 हजार रुपए क्विंटल है। सरकार डिवीजन स्तर पर खैर के कटान की मंजूरी दे तो अरबों रुपए का राजस्व सरकारी खजाने में आ सकता है। धवाला के अनुसार खैर का एक पेड़ काटकर 3 पौधे रोपे जा सकते हैं। इनकी कोंपलें प्राकृतिक रूप से निकल जाती हैं। इस प्रकार सरकार अपनी आर्थिकी सुदृढ़ कर सकती है। 

नूरपुर, पांवटा व बिलासपुर रेंज में होगा ट्रायल

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार की याचिका पर नूरपुर, पांवटा और बिलासपुर रेंज में ट्रायल आधार पर खैर कटान की बीते साल मंजूरी दी थी। अब अगले साल जनवरी में इन तीनों रेंजों में खैर का वैज्ञानिक तरीके से कटान होगा। रिटायर्ड प्रिंसीपल कंजरवेटर वी.टी. मोहन की अगुवाई में बनी कमेटी सुप्रीम कोर्ट को इसकी रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके बाद प्रदेश में खैर कटान पर प्रतिबंध को लेकर कोर्ट निर्णय लेगा। 

राजनीति में हैं पर ठेठ देहाती जीवन जीते हैं

करीब 20 साल पहले 1998 में भाजपा सरकार बनाने में अहम रोल अदा करने वाले धवाला अपने सादेपन और ठेठ देहाती अंदाज के लिए जाने जाते हैं। राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने अपना यह अंदाज नहीं छोड़ा। धवाला रोज सुबह 6 बजे उठकर अपने गांव की खड्ड में नहाने जाते हैं। देसी दातुन करते हैं। बीते 40 वर्षों से यही उनकी दिनचर्या है। खड्ड किनारे 2 घंटे योग करके फिर वहीं लोगों की समस्याएं सुनने लगते हैं। फिर घर आकर पुन: अपने हलके से आए लोगों से मिलना और गांव-गांव घूमना उनकी आदत बन चुकी है। देहरा और नादौन से भी लोग धवाला के पास फरियाद लेकर आते हैं।  

सच्ची बात करता हूं, इसलिए चुभता हूं

अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाने वाले धवाला कई बार इस वजह से विवादों में घिर चुके हैं। धवाला इसे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत मानते हैं। वे कहते हैं कि मैं सच्ची बात करता हूं, विधानसभा में और सरकार के सामने लोगों के मसले उठाता हूं, इसलिए अपनी सुविधानुसार राजनीति करने वाले लोगों को मेरी यह बेबाकी पसंद नहीं आती है। इसलिए उन्हें मैं चुभता हूं पर मैं जैसा हूं, वैसा ही रहूंगा। चाहे सरकार में हूं, लेकिन जनता का हर जायज मसला उठाना मेरा फर्ज है।  

संगठन का विवाद अब बीती बात

हाल ही में संगठन के साथ चले विवाद को लेकर धवाला कहते हैं कि यह अब बीती बात है। अभी उपचुनाव सामने हैं। मुझे धर्मशाला में एक जोन का प्रभार सौंपा गया है। 15 तारीख को कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर प्रचार का खाका खींचेंगे। मुख्यमंत्री ने उनके व संगठन मंत्री पवन राणा के बीच विवाद को हल करने की जिम्मेदारी ली है तो वही जानें, लेकिन मैं इस बात पर कायम हूं कि संगठन और सरकार को एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 

सरकारी धन बर्बाद होते देख दुख होता है...

विधानसभा की प्राकलन समिति के चेयरमैन के तौर पर रमेश धवाला ने हाल ही में अन्य सदस्यों के साथ कई जिलों का दौरा किया है। धवाला कहते हैं कि कई स्थानों पर सरकारी धन की बर्बादी देख दुख होता है। सिरमौर जिले के शिलाई में 14 करोड़ से बनी सड़क कुछ माह में ही 50 फीसद टूट गई। बताया गया कि ठेकेदार का मिक्सचर प्लांट काफी दूर था। टैम्प्रेचर कम होने के कारण मैटीरियल ठीक नहीं बना। इसकी रिपोर्ट मांगी है। चामुंडा देवी मंदिर से 53 मील तक ए.डी.बी. के सहयोग से लगी 40 लाख की लाइटें लंबे अरसे से शोपीस बनी हैं। तर्क दिया जा रहा है कि इनका बिल कौन भरेगा। कई लाइटें तो लोग उखाड़कर ले गए हैं। 

Ekta