सतलुज, ब्यास, यमुना, रावी बहने के बाद जानिए क्यों है पानी की कमी

Friday, Jun 01, 2018 - 09:05 AM (IST)

शिमला: हिमाचल में सतलुज, ब्यास, यमुना व रावी जैसी बड़ी नदियां बहने के बाद भी जल संकट का होना सरकारों की मंशा पर सवाल उठाता है। इससे साफ झलकता है कि आज तक प्रदेश की सत्ता का सुख भोगने वाले किसी भी सियासी दल की सरकार ने यदि पेयजल समस्या को गंभीरता से लिया होता तो शहरों में आज पानी के लिए हाहाकार नहीं मचता। शिमला को भी कोल डैम से 10 साल से पानी लाने की योजना बन रही है लेकिन अभी भी यह परियोजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। 


प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी कई योजनाएं राजनीतिक इच्छाशक्ति न होने के कारण सालों से लटकी पड़ी हैं। यही वजह है कि शिमला के बाद अब प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी वाटर एमरजैंसी जैसे हालात बनते जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों के घरों में लगे नल 10 से 15 दिन बाद भी सूखे पड़े हैं। शहरों में तो आई.पी.एच., जिला प्रशासन और स्थानीय शहरी निकाय वाटर टैंकर लगाकर लोगों को पानी सप्लाई कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण आबादी पूरी तरह भगवान भरोसे हैं। यह स्थिति प्रदेश में 1,400 से अधिक पेयजल योजनाओं के जल स्तर में गिरावट आने के कारण पैदा हुई है।


1,400 स्कीमों में गिरा जलस्तर
सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग की मानें तो प्रदेश में 1,400 पेयजल स्कीमों पर सूखे का असर पड़ा है। भयंकर गर्मी के कारण प्रदेशभर की 140 स्कीमों में 75 फीसदी से ज्यादा जल स्तर गिर गया है। ये योजनाएं कभी भी पूरी तरह से बंद हो सकती हैं। सूबे में 350 स्कीमों में 50 फीसदी से अधिक तथा 910 स्कीमों में 10 से 50 फीसदी तक पानी कम हुआ है। पेयजल स्रोतों में पानी कम होने से मजबूरन पानी की राशनिंग करनी पड़ रही है। इससे खासकर दूरदराज के क्षेत्रों के लोग पानी की ज्यादा किल्लत झेल रहे हैं। 


किस जिला में कितनी दिक्कत?
- शिमला शहर के बहुत से इलाकों में 10-15 दिन बाद भी पानी नहीं मिल रहा। हालांकि सरकार ने शिमला को 3 जोनों में भी विभाजित कर दिया है। फिर भी बहुत से लोगों को पानी नहीं दिया जा रहा है। हाईकोर्ट ने पहली बार शहर में पानी की किल्लत कोलेकर इतनी जबरदस्त फटकार लगाई है।
- सोलन की भी कुछेक कॉलोनियों में भी 4 से 5 दिन बाद पानी मिल रहा है। सोलन जिला में 8 पेयजल स्कीमें प्रभावित हुई हैं। सोलन शहर के अलावा अर्की व नालागढ़ में भी पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है।
- कांगड़ा जिला में सूखे के कारण 75 पेयजल स्कीमें प्रभावित हुई हैं। इनमें वाटर लेवल कम होने से पानी की राशिंग की जा रही है। इस वजह से कांगड़ा जिला के भी बहुत से क्षेत्रों में लोगों को 3 से 4 दिन बाद पानी मिल पा रहा है।
- ऊना जिला के चिंतपूर्णीऔर कुटलैहड़ शहर में लोग पानी की खूब किल्लत झेल रहे हैं। जिला में पानी के टैंकरों की भी व्यवस्था नहीं है। इस कारण लोगों को पर्याप्त पेयजल नहीं मिल पा रहा है। ऊना जिला में 70 स्कीम सूखे के कारण प्रभावित हुई हैं।
- मंडी जिला में शिमला के बाद सूखे का सबसे ज्यादा असर देखा गया है। मंडी में 307 पेयजल स्कीमों के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। इस वजह से लोग परेशान हैं।
- कुल्लू जिला में 75 स्कीमें प्रभावित हुई हैं।  कुछेक ग्रामीण क्षेत्र राशनिंग के कारण पानी की कमी झेल रहे हैं।
- हमीरपुर जिला में 38 योजनाएं प्रभावित बताई जा रही हैं। इस कारण हमीरपुर और नादौन में पेयजल किल्लत हो रही है। हमीरपुर के ग्रामीण इलाकों के लोग भी पेयजल किल्लत झेल रहे हैं।
- सिरमौर जिला में 107 स्कीमें सूखे के कारण प्रभावित हैं। नाहन और पांवटा शहर के लोग ज्यादा पेयजल किल्लत झेल रहे हैं। इस वजह से कुछ क्षेत्रों में 3-4 दिन बाद पानी मिल रहा है। नाहन के एक गांव के लोगों ने नहर का पानी तक रोकने का अल्टीमेटम दे रखा है। सिरमौर जिला के ग्रामीण इलाके ज्यादा पेयजल किल्लत झेल रहे हैं।
- चम्बा में 3 दर्जन से अधिक पेयजल योजनाएं बताई जा रही हैं, जिनमें सूखे के कारण जलस्तर गिरा है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अधिक परेशानी में हैं।


कमी के कारण?
- शिमला समेत प्रदेशभर में पानी की किल्लत का सबसे बड़ा कारण लीकेज है। अकेले शिमला शहर में रोजाना 4 से 6 एम.एल.डी. यानी 40 से 60 लाख लीटर पानी बर्बाद होता है। कुछ पानी पंप हाऊस तो कुछ पानी पेयजल लाइन से लीकेज के कारण बर्बाद हो रहा है।
- प्रदेश में 57 छोटे-बड़े शहर बस गए हैं। इनमें एक भी ऐसा शहर नहीं है, जिसके बसने से पहले प्लानिंग की गई हो। हर जगह सरकारें शहर बसने के बाद ही जागी हैं। दर्जनों रसूखदार लोगों को स्टोरेज टैंक से पहले यानी मेन लाइन से कनैक्शन दे दिए गए, जोकि गैर-कानूनी है।
- प्रदेश में जब भी जल संकट गहराया है, हर बार सबसे पहले वाटर डिस्ट्रीब्यूशन पर सवाल उठते रहे हैं। घर-घर तक पानी पहुंचाने का जिम्मा संभालने वाले की-मैन पर डिस्ट्रीब्यूशन में भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं। इस बात को प्रदेश के आई.पी.एच. मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर भी मान चुके हैं।
- आई.पी.एच. अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। 
-आमतौर पर अधिकारी फील्ड में नहीं जाते। इस वजह से की-मैन मनमानी करते हैं और लोगों को समान रूप से पेयजल नहीं मिल पाता। इसी तरह पेयजल स्कीमों की मशीनरी और पंप की विभाग को सही जानकारी नहीं मिल पाती।
- प्रदेशभर में वाटर डिस्ट्रीब्यूशन में लगा ज्यादातर फील्ड स्टाफ लोकल है। लोकल होने के कारण जल वितरण में भेदभाव होता रहा है। लोकल कर्मचारी अपने जान-पहचान के लोगों को तो पानी दे देता है और आम जनता की अनदेखी होती है। यही नहीं बहुत बार आई.पी.एच. कर्मचारी लोगों से दुर्व्यवहार भी करते हैं।
- शिमला को अंग्रेजों ने 25,000 की आबादी के लिए बसाया है। आज शिमला की आबादी पौने 3 लाख हो गई है लेकिन जरूरत के हिसाब से नई स्कीमें नहीं बनाई गईं। केवल गिरि और कोटी-बरांडी स्कीम ही राज्य सरकार द्वारा आजादी के 72 सालों में बनाई गई है। अश्विनी खड्ड से भी सप्लाई बंद पड़ी है।
- ऑन गोइंग स्कीमों के निर्माण में देरी के कारण भी प्रदेशभर में हजारों लोग पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। प्रदेश में बहुत सी स्कीमें ऐसी भी हैं, जिनको निर्माण अवधि से बहुत ज्यादा समय बीतने के बाद भी शुरू नहीं किया गया है।
- सर्दियों में अच्छी बारिश व बर्फबारी न होने के कारण भी इस बार ज्यादा पेयजल संकट बना हुआ है। ज्यादातर छोटे-छोटे नदी-नाले और प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं। इस वजह से भी लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
- 2 दशक पहले तक प्रदेश में सैंकड़ों बावडिय़ां व अन्य प्राकृतिक स्रोत लोगों की प्यास बुझाने का काम करते थे लेकिन अब ज्यादातर प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं। विकास की अंधी दौड़ में लोगों ने या तो सड़कें बनाकर या फिर मकान बनाकर प्राकृतिकस्रोतों को खत्म किया है।
- भविष्य में किसी भी शहर को बसाने से पहलेे उसके लिए पेयजल का प्रबंध करना होगा।


लो जी ! अब पानी की चोरी शुरू
शिमला में अब पानी की चोरी शुरू हो गई है। बस यही सुनने को रह गया था। जी हां ऐसा ही होने लगा है अब शिमला में। कुछ लोगों ने बताया कि कुछ लोग रात को उन घरों की टंकियों से पानी चोरी कर रहे हैं, जिनमें थोड़ा बहुत पानी बचा है। यही नहीं पानी के लिए लोग मीलों गाड़ियों से पानी भर कर ला रहे हैं। शिमला से कई लोग रिश्तेदारों के पास चले गए हैं। लोगों ने यह भी बताया कि ऐसे ही हालत रहे तो यहां महामारी तक फैल सकती है। सार्वजनिक शौचालय बिन पानी ब्लाक हो चुके हैं। दुकानदार किशनदेव कहते हैं कि उन्होंने पानी की कमी के चलते पत्नी व बच्चों को कांगड़ा भेज दिया है। 

Ekta