दंपत्ति की दुखभरी दास्तां : 2 बच्चों की मौत के बाद तीसरा भी हुआ रहस्यमयी बीमारी का शिकार

Thursday, Dec 24, 2020 - 05:49 PM (IST)

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा) : लाचार माता-पिता और उनके सामने 11 वर्ष का बीमार बेटा। एक अज्ञात बीमारी के शिकार बच्चे इसी लाइलाज बीमारी से दम तोड़ रहे हैं। 2 बच्चों की मौत का गम अभी भूले नहीं कि तीसरा बच्चा फिर उसी बीमारी का शिकार होकर चलने फिरने में असमर्थ हो चुका है। तीसरी कक्षा तक स्कूल गए बच्चे में जब बीमारी के लक्षण आने लगे तो स्कूल छोड़ना पड़ा। 11 वर्ष का यह बच्चा अभी चारपाई पकड़ चुका है। न खुद कुछ खा सकता है और न चल फिर सकता है। मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ है लेकिन वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता है क्योंकि न तो उसके अभी हाथ काम करते हैं और न ही पैरों के बलबूते पर खड़ा हो सकता है। असहाय मां-बाप बच्चे को अपनी गोद में उठाए निहारते रहते हैं। 

बीपीएल से भी कट चुका है परिवार का नाम

बच्चों के पिता राकेश कुमार तथा माता सुमन का कहना है कि उनके 2 बेटों की क्रमशः 12 और 16 वर्ष की आयु में मौत हो चुकी है। यह तीसरा बच्चा है जो अब इसी प्रकार की रहस्यमयी बीमारी का शिकार हो चुका है। पीजीआई से लेकर लखनऊ तक इस बच्चे के टेस्ट करवाए लेकिन इनका कोई स्थायी उपचार नहीं हो पाया है। आर्थिक संसाधन इतने नहीं कि वह कोई कारगर इलाज के लिए बड़े अस्पतालों के चक्कर काट सकें। बीपीएल में नाम था लेकिन वह भी कट चुका है। आंखों से अश्रुधारा बहाते हुए राकेश कुमार कहते हैं कि भले ही आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं लेकिन उन्होंने अपने बच्चों का हरसंभव उपचार करवाया है लेकिन 2 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। वह अपने इस बच्चे को खोना नहीं चाहते लेकिन कुदरत के आगे उनका कोई वश नहीं है। 

4 बच्चों में बड़ी बेटी है स्वस्थ

उपमंडल अम्ब के तहत ग्राम पंचायत कुठेड़ा खैरला के दिहाड़ी मजदूरी करने वाले राकेश कुमार कुदरत के इस कोप से बेहद व्यथित हैं। 4 बच्चों में से सबसे बड़ी बेटी ही स्वस्थ है जबकि बेटे इस रहस्यमयी रोग के शिकार हो रहे हैं। इसी रोग की वजह से 2 बच्चों को खो चुका यह दंपत्ति इस उम्मीद में है कि कोई चमत्कार हो और उनका बच्चा फिर से स्वस्थ होकर स्कूल शिक्षा ग्रहण करने जाए।

बेटे का चारपाई पर कर रहे पालन-पोषण

कुठेड़ा खैरला का यह परिवार आर्थिक दिक्कतों के बावजूद जीवन यापन कर रहा है। रहस्यमयी बीमारी ने उनके तमाम सपने धराशायी कर दिए हैं। किसी प्रकार की भी कोई चिकित्सीय सहायता इस परिवार को नहीं मिल पाई है। बेटे का चारपाई पर ही पालन-पोषण कर रहे हैं। भले ही बेटा चल-फिर नहीं सकता और न ही खुद खाना खा सकता है लेकिन वह मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ और बड़ों की तरह आचार-व्यवहार करता है। सीने से लगाए मां उसे पकड़े रखती है। वह बिना सहारे के बैठ भी नहीं सकता है। परिवार के समक्ष दिक्कत यह है कि वह अपनी आजीविका के लिए दिहाड़ी मजदूरी करे या इस बच्चे को संभाले। ऐसी विकट और विपरीत परिस्थितियों में यह परिवार अपना जीवन यापन कर रहा है।
 

prashant sharma