एक ऐसा गांव जहां पवित्र स्थल को छूने पर भरना पड़ता है जुर्माना

Monday, Jul 10, 2017 - 01:03 AM (IST)

कुल्लू: यदि आप दुनिया के प्राचीनतम लोकतंत्र मलाणा के दीदार करने जा रहे हैं तो मलाणा में प्रवेश करते ही हिंदी और अंग्रेजी में लिखे बोर्ड ध्यान से पढि़ए। नहीं तो आपको जेब ढीली करनी पड़ सकती है। यदि आपकी जेब से धन नहीं निकला तो आपको यहां के राजा का नौकर बन कर कुछ समय सेवा करनी पड़ेगी। जब जुर्माने की राशि पूरी होगी तभी आपको जाने दिया जाएगा। मलाणा में करीब आधा दर्जन स्थल ऐसे हैं, जिन्हें छूने की पूरी तरह से मनाही है। ग्रामीणों का मानना है कि यदि पवित्र स्थलों को छूने की जहमत उठाई तो इसका खमियाजा जुर्माने के रूप में भुगतना पड़ता है।

जुर्माना नहीं भरने पर होती है ऐसी तबाही
लोगों का मानना है कि यदि जुर्माना नहीं भरा तो ऐसी स्थिति में कभी आगजनी, कभी बाढ़, कभी सूखा तो कभी अज्ञात बीमारी की चपेट में मलाणा गांव आ सकता है। कुछेक स्थान तो मलाणा में ऐसे हैं, उन्हें तो यहां के लोग भी नहीं छू सकते। ये स्थान देवता के पवित्र स्थानों में शामिल हैं। सिर्फ  देवता के पुजारी व विशेष ओहदेदार ही स्नान के बाद ऐसे स्थानों को स्पर्श कर सकते हैं। हालांकि मलाणा के इन स्थानों पर हिंदी और अंग्रेजी में सूचना पट्ट भी लगाए गए हैं। 

बिना अनुमति छूने पर नाराज हो जाता है देवता
मलाणा वासियों का कहना है अगर बाहरी व्यक्ति इन स्थानों को बिना अनुमति से छूता है तो इससे उनका देवता नाराज होता है और उस नाराजगी की जद्द में पूरा गांव आ जाता है। जब मलाणा के बाशिंदों ने अपने आप को आधुनिकता में ढालना चाहा तो इनका पूरे का पूरा गांव उजड़ गया। वर्ष 2006 और वर्ष 2008 में भीषण अग्निकांड में मलाणा गांव पूरी तरह से स्वाह हुआ है और अभी भी पुराने ढर्रे पर पूरी तरह से नहीं लौट पाया है। इसे देखते हुए ही मलाणा में अब देव नियम कड़े किए गए हैं। 

दुनिया के लिए अंचभा है मलाणा गांव
पूरी दुनिया के लिए विश्व के प्राचीनतम लोकतंत्र के रीति-रिवाज किसी हैरत से कम नहीं हैं। यहां का कानून भी अचंभे से कम नहीं है। उस पर सरकार और पुलिस का भी वश नहीं चलता। इनकी अपनी ही सरकार है, अपनी संसद है, अपना राजा है और अपना ही कानून है। सजा देने का भी अपना ही प्रावधान है। इसके लिए यहां निम्न और उच्च सदन बने हुए हैं। समय की चकाचौंध में आधुनिकता की परत समाज पर चढ़ रही है लेकिन इनका समाज आधुनिकता से काफ ी दूर है। करीब 12 हजार फु ट की ऊंचाई पर बसा मलाणा गांव अढ़ाई हजार की आबादी वाला गांव है। आधुनिकता के तौर-तरीके बदल जाने के बाद भी यहां के लोग कणाशी बोलना ही पसंद करते हैं। इन दिनों मलाणा में देशी व विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा हुआ है।

कई घरों में ताले तक नहीं लगते 
मलाणा के कई घरों में ताले तक नहीं लगते हैं। चोरी से यहां के बाशिंदे बेखौफ  रहते हैं। कुल्लू की लोक संस्कृति के जानकार एवं मलाणा पर शोध कर चुके डा. सूरत ठाकुर का कहना है कि सोने-चांदी सहित अपनी नकदी को भी ये लोग ताला नहीं लगाते हैं। चोरी की वारदात को अंजाम देने वालों को जमलू दंड देता है। उनका देवता ही उनके गांव का पहरा करते हैं। आज तक लोगों ने अपने घरों में ताले नहीं लगाए हैं। बेशक वे मंदिर में ताला अवश्य लगाते हैं। 

पवित्रता बनाए रखना बहुत जरूरी  
प्रधान भागी व ग्रामीण बुध राम का कहना है कि देवता के पवित्र स्थानों की पवित्रता बनाए रखना अति आवश्यक है। यदि देव स्थल अपवित्र हुए तो देवता इसका दंड देता है। अगर किसी ने जाने-अनजाने में पवित्र स्थानों का स्पर्श किया तो उन्हें दंड स्वरूप अब 3500 रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है। पूर्व में यह राशि 1 हजार रुपए, फिर 2500 रुपए और अब 3500 रुपए हो गई है। फि र देवता के कारकूनों को पूरी देव विधि से मलाणा से करीब 60 किलोमीटर दूर रुद्रनाग नामक स्थान से पवित्र जल लाना पड़ता है और उन स्थानों की शुद्धि करनी पड़ती है, जो अपवित्र हुए होते हैं। दूसरा उपाय इसका यह है कि किसी भेड़ या बकरे का कान काटकर उसे जंगलों में खुला छोड़ दिया जाता है। इसके लिए गांव में करीब 5-6 स्थानों पर सूचना पट्ट भी लगाए गए हैं।