एक ‘गुरु’ ऐसा भी, 13 साल तक गुफा में संवारा नौनिहालों का भविष्य

Wednesday, May 31, 2017 - 12:12 PM (IST)

कुल्लू: गुरु और शिष्य का रिश्ता सबसे बढ़कर होता है। जब गुरु शिष्य को ज्ञान की दौलत देता है तो वह उसकी पूरी जिम्मेदारी उठाता है। ऐसा ही कुछ हिमाचल के कुल्लू जिला में देखने को मिला है। तीन-चार किलोमीटर के संकरे रास्ते से आने वाले बच्चों के ठंड के दिनों में गर्म पानी से पांव धोना, खाना खिलाना तथा उसके पश्चात कक्षा का पाठ्यक्रम पढ़ाना शिक्षक हरिदत्त शर्मा के लिए हर रोज का काम बन गया था। यह सब किसी प्राचीन गुरुकुल में नहीं बल्कि 21वीं सदी होता आया है। जी हां, यह वाक्य बंजार उपमंडल की अति दुर्गम पंचायत गड़ापारली के शाकटी गांव का है। 


हरिदत्त शर्मा के लिए किसी चुनौति से कम नहीं था यह काम
13 नवंबर, 1988 को राज्य सरकार ने सैंज घाटी के सबसे सुदूर गांवों शाकटी-मरौड़ के लोगों के लिए राजकीय प्राथमिक पाठशाला शाकटी के नाम से स्कूल स्वीकृत्त किया लेकिन भवन की व्यवस्था नहीं हो पाई। बताया जाता है कि यह काम अध्यापक हरिदत्त शर्मा के लिए किसी चुनौति से कम नहीं था। हरिदत्त शर्मा ने शुरू में लोगों द्वारा दिए कमरे में पढ़ाना शुरू किया लेकिन पारिवारिक समस्या के चलते मकान मालिक ने यह कमरा उनसे वापिस ले लिया। लेकिन उन्होंने तब भी हार नहीं मानी। उन्होंने गांव से कुछ दूरी पर गुफा ढूंढ़ी और बच्चों की कक्षाएं इसमें लगानी शुरू कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने जहां दिन को इस गुफा में बच्चे पढ़ाए। वहीं सुबह-शाम पत्थर तोड़ कर गुफा के अंदर दीवारें बन कर तीन कमरे रुपी गुफाएं तैयार की। जो आज भी आकर्षण का केंद्र है। 


31 मई को राजकीय केंद्र प्राथमिक पाठशाला शैंशर से हो रहे सेवानिवृत्त
31 मई को वह राजकीय केंद्र प्राथमिक पाठशाला शैंशर से सेवानिवृत्त हो रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि वे आज भी हर महीने इस गांव का दौरा करते हैं। वहीं पूर्व मंत्री ठाकुर सत्य प्रकाश ठाकुर ने उनको सेवानिवृति पर बधाई संदेश भेजते हुए बताया कि सैंज घाटी के शाकटी में पाठशाला खोलने के लिए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मांग की थी। जिसे मुख्यमंत्री ने विशेष स्थिति तहत स्वीकृत्त किया था। क्योंकि उस वक्त शाकटी में आबादी काफी कम थी।