यहां फेल हुआ 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान, 80% बच्चियों ने स्कूल जाना छोड़ा

Sunday, Jan 20, 2019 - 11:34 AM (IST)

चंबा (विनोद): यहां से 480 किलोमीटर दूर राजधानी शिमला में न जाने कितनी बातें बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ की होती हैं। न जाने कितना पैसा ऐसे स्लोगन और प्रचार पर खर्च हो जाता है, लेकिन राजधानी शिमला से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित चम्बा जिला के चम्बा विधानसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली ग्राम पंचायत कीड़ी के 7 गांवों की बच्चियों की हालत इन दावों से विपरीत है। मुसीबत यह है कि इन 7 गांवों के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए हर दिन 14 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे की शिक्षा को यहां के बच्चों को सबसे नजदीक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल कीड़ी पड़ता है, जोकि 14 किलोमीटर दूर है। हालत यह है कि इन गांवों में जितनी भी लड़कियां हैं, उन सब ने यूं तो 5वीं तक की शिक्षा तो प्राप्त कर रखी है, लेकिन इससे आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल छोडऩे वाली लड़कियों की संख्या 70 से 80 प्रतिशत के बीच है। ये गांव हैं कीड़ी के गांव दलेई, रोणी, बेही, मटेना, कोठी, द्रोबड़ व अठलूहीं। इसके पीछे कारण स्कूल की दूरी है।

जो बच्चे पढ़ते हैं वो हर मौसम में हालात से लड़ते हैं

लोगों का कहना है कि उपरोक्त गांवों के बच्चों को अपने गांवों से पैदल कीड़ी पहुंचने के लिए 2 घंटे लगते हैं तो वहीं स्कूल से गांवों तक पहुंचने के लिए अढ़ाई घंटे लगते हैं। इस स्थिति में पूरा दिन बच्चे का स्कूल आने व जाने तथा शिक्षा ग्रहण करने में ही बीत जाता है। जब बच्चे घर पहुंचते हैं तो बेहद थके होते हैं। हर दिन इतनी अधिक दूरी तय करना बेहद कठिन कार्य है। यह कार्य बरसात व गर्मियों के दिनों में और भी मुश्किल भरा हो जाता है। क्योंकि बरसात में स्कूल के गांव तक पहुंचने के दौरान बीच में बारिश से बचने की कोई सुविधा नहीं है तो गर्मियों में बच्चों को स्कूल से घर तक की दूरी तय करने के लिए खूब पसीने से तर होना पड़ता है। कीड़ी पंचायत प्रधान मुन्नो देवी का कहना है कि यह बात सही है कि चम्बा विधानसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली ग्राम पंचायत कीड़ी व अठलूई के बच्चों को 5वीं से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए या तो राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल कीड़ी या फिर राजकीय माध्यमिक स्कूल बंजल जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह बात भी सही है कि गांव से स्कूल की अधिक दूरी होने की वजह से इसका सीधा असर इन गांवों की लड़कियों की शिक्षा पर पड़ रहा है।

स्कूल की दूरी है बच्चियां न पढ़ा पाने की मजबूरी

सोभिया राम, जगदीप सिंह, शुकणू, बलदेव, मनोज कुमार, हेमराज, प्रकाश चंद, नारद, जरमो नोरद, भोटो, पूजा, अंजू, सुरेंद्र कुमार, अमर सिंह व किशनू का कहना है कि अफसोस की बात है कि अभी तक उनके गांवों के बच्चों को इतनी अधिक दूरी तय करके शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यूं तो सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं के नारे तो लगाती है लेकिन बेटियों को पढ़ाने के लिए कम से कम स्कूलों की व्यवस्था तो करे। जब बेटियों को 5वीं से आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए हर दिन 4 घंटे पैदल सफर तय करना पड़े तो फिर बेटियां शिक्षित कैसे हो सकती हैं। कैसे आज के माहौल में बच्चियों को इतनी दूर अकेले भेजें। अभिभावकों का कहना है कि आज के दौर में जो माहौल है, उसे देखते हुए कोई भी अभिभावक अपनी बेटियों को इतनी अधिक दूरी तय करके स्कूल भेजने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है। ऐसे में सरकार, प्रशासन व शिक्षा विभाग इस बारे अपनी गंभीरता दिखाएं।

Ekta