68 बसंत देख चुके लाहौल-स्पीति के सुखदयाल आज भी घुमा रहे चरखा

Wednesday, Oct 03, 2018 - 09:42 AM (IST)

कुल्लू (धनी राम): जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के ठोलंग निवासी सुखदयाल का जीवन चरखा, खड्डी व धागों के ताने-बाने से उलझ कर उनके चाहने वालों को उम्र के 68वें पड़ाव में भी सुंदर वस्त्र तैयार कर उनमें खुशी का संचार करना है। गौर रहे कि यह शख्स आजीवन महात्मा गांधी के बुनकर विद्या और चरखे के साथ-साथ बिल्कुल साधारण जीवन यापन करने में विश्वास रखते हैं। अपने जीवन काल में परिस्थितियां चाहे कैसी भी आई हों इन्होंने खड्डी, धागा और चरखा कभी नहीं छोड़ा। हालांकि सरकारी नौकरी भी लंबे समय तक की लेकिन बुनकर विद्या को साथ-साथ चलाए रखा। यही कारण है कि इन्होंने अपने भरे पूरे परिवार का पालन-पोषण बहुत ही सरलता से करवाया। 

सुखदयाल कहते हैं कि खड्डी और चरखा मेरी पूजा है। इसी के बलबूते जहां में अपने परिवार का लालन-पालन अच्छे से कर पाया हूं वहीं मेरी सेहत का राज भी इसी खड्डी में लगातार कठिन परिश्रम और साधना है। सुखदयाल सेन को आज भी किसी किस्म का शारीरिक कष्ट नहीं है। रक्तचाप पूछें तो एक हृष्ट-पुष्ट नवयुवक जैसे ही है। भरे पूरे शरीर और सुडौल कदकाठी वाले इन शख्स से आज भी कोई अजनबी मिलता है तो इन्हें देखकर गौरव की अनुभूति करता है। अपने बुनकर विद्या के दक्ष इनके चाहने वालों और इनके पास बुनाई करवाने वालों का अटूट विश्वास और प्रेम इन्हें और अधिक प्रसन्न करवाता है। 

...अंदाजे से बता देते हैं वजन
मजेदार बात यह है कि आज भी सुखदयाल के पास वही पुराना तोल-तराजू है और छब्बा-बट्टे भी पुराने जमाने के हैं। यही नहीं एक आध बट्टे तो पत्थर के तोल के बना रखे हैं। यही नहीं कभी-कभी तो सूत या धागे को हाथ में ही तोल कर अंदाजे से ही बता देते हैं कि इतना वजन होगा और इससे आप का इतना मीटर चादर या पट्टी का निर्माण होगा। 

कई पुरस्कार कर चुके हैं अर्जित
सुखदयाल की सादगी का अपने इलाके में डंका है। इसे और अधिक मजबूती तब मिली जब भूट्टिको के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सत्यप्रकाश ठाकुर ने इन्हें स्वर्गीय ठाकुर वेद राम राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा और बुनकरों के शुमार में मुख्य धारा पर लाया। सुखदयाल को कई संस्थाओं समेत कुल्लू और लाहौल-स्पीति प्रशासन ने भी सम्मानित किया। प्रदेश की कला एवं भाषा विभाग की सचिव पूर्णिमा चौहान इनके कार्य और गांधी प्रेम से प्रभावित हैं। 

सुखदयाल ने युवाओं से किया बुनकर विद्या अपनाने का आह्वान 
सुखदयाल कहते हैं कि इस विद्या को आगे बढ़ाने के लिए उनके पुत्र काम कर रहे हैं जो अच्छी बात है। उनका युवाओं से भी आह्वान है कि बुनकर विद्या कोजरूर अपनाएं।
 

Ekta