निजी और सरकारी क्षेत्रों में कटान मंजूरी से माफिया की पौबारह

Friday, Feb 02, 2018 - 02:54 PM (IST)

बिलासपुर: बिलासपुर जिला के नयनादेवी इलाके की वन विभाग की 3 बीटों में करोड़ों रुपए की कीमत वाले हरे पेड़ों के कटान के मामले में विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की कथित मिलीभगत की परतें उधडऩे लगी हैं। वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका पर सबसे बड़ा संदेह यहां आकर पैदा हुआ है कि इन्होंने सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों में खैरों के पेड़ों के कटान की अनुमति दे दी। इससे ठेकेदारों को सरकारी जंगल में पेड़ों के कटान की अनुमति की आड़ में सरकारी जंगल को तबाह करने का मौका मिल गया। ठेकेदारों ने तथाकथित विभागीय शह में हजारों की संख्या में सरकारी जंगल से पेड़ काट लिए। महकमे के स्थानीय अधिकारियों की कटान का खुलासा होने के बाद पूरे मामले में नरमी के भी प्रमाण सामने आ रहे हैं। 


खुलासा हुआ है कि करीब एक साल पहले की इस वारदात में निलंबित हुए विभागीय कर्मचारी तयशुदा सेवा नियमों के तहत दोबारा बहाल भी हो गए लेकिन महकमा करोड़ों रुपए की वन संपदा की चोरी के इस मामले में आज तक विभागीय जांच ही शुरू नहीं कर पाया। हाल ही के दिनों में मीडिया रपटों के बाद राज्य सरकार की ओर से बरती गई सख्ती के बाद महकमा चार्जशीट दायर करने के लिए सुस्त चाल से चलने को तैयार हुआ। विभाग अब तक विभागीय जांच के लिए कोई अधिकारी भी तय नहीं कर पाया है। ऐसे में सवाल यह हैं कि ऐसा क्या हुआ है कि लगभग साल बीतने को है और विभाग ने करोड़ों रुपए के सरकार के नुक्सान की अब तक न तो चार्जशीट बनाई है और न ही विभागीय जांच के लिए कोई कदम उठाया।


अब मामला ठंडे बस्ते में
पिछले वर्ष इस कटान का खुलासा होने के बाद विभागीय कार्रवाई के रूप में एक डिप्टी रेंजर और 2 गार्डों को निलंबित कर दिया गया था तथा इन्हें अन्यत्र तबदील कर दिया गया लेकिन उसके बाद लगभग 10 महीनों से इतने बड़े घपले की चार्जशीट ही विभाग ने तैयार नहीं की और इस बीच 3 महीनों के बाद 3 निलंबित कर्मी बहाल किए गए। इनकी बहाली के साथ ही विभाग ने चार्जशीट तैयार करने का पूरा मसला ही ठंडे बस्ते में डाल दिया और विभागीय जांच भी शुरू नहीं की। जानकारी मिली है कि निजी क्षेत्र में हुए कटान में मिलीभगत के चलते ही लोगों की जमीन में मार्क  किए गए पेड़ों से कई गुना ज्यादा पेड़ काटे गए। 


600 हरे पेड़ों को सूखा बताकर काट डाला
सूत्रों ने यहां बताया कि जिन सरकारी क्षेत्रों में वन निगम को सूखे पेड़ों के कटान का दावा करते हुए कटान की मंजूरी दे दी गई थी, वे अधिकतर पेड़ हरे ही थे। विभागीय मिलीभगत के चलते 600 हरे पेड़ों को सूखा दिखाकर उन्हें काटने की अनुमति दी गई। यहां भी महकमे के अफसरों और निचले दर्जे के कर्मियों की नीयत साफ  नजर नहीं आ रही।