प्रतिबंध के बावजूद सरकारी शिक्षक पढ़ा रहे ट्यूशन!

Monday, Nov 23, 2015 - 12:19 AM (IST)

करलोटी: शिक्षा विभाग से संबंधित सरकारी स्कूलों के शिक्षक बेखौफ होकर विभागीय मापदंडों को तिलांजलि देकर स्कूल टाइम के बाद ट्यूशन पढ़ाकर मोटी कमाई करके सरेआम भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। ट्यूशन पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद कुछ सरकारी शिक्षकों द्वारा ट्यूशन रूपी गैर-कानूनी कृत्य को अंजाम दिया जा रहा है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों के अध्यापकों पर ट्यूशन पढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन प्रतिबंध के बावजूद कुछ सरकारी स्कूलों के अध्यापक अवैध घोषित किए गए इस धंधे को बेखौफ अंजाम दिया जा रहा है।

 

लोगों ने विभाग की अफसरशाही पर कमजोर पकड़ व लचर कार्यप्रणाली का आरोप जड़ते हुए कहा है कि जिला के बड़े और छोटे सभी कस्बों में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का अवैध कारोबार किया जा रहा है लेकिन विभाग को कानोंकान खबर तक नहीं है। बुद्धिजीवी वर्ग ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की गैर-जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा है कि सरकार स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की एवज में अध्यापक वर्ग को माहवार मोटी रकम वेतन के रूप में देकर भरपाई कर रही है, बावजूद इसके अध्यापकों द्वारा ट्यूशन के धंधे को अंजाम दिया जा रहा है। इससे स्पष्टï संकेत मिलते हैं कि सरकार द्वारा दी जा रही 30 से 50 हजार रुपए तक की तनख्वाह से उनका पेट नहीं भर रहा है।

 

लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूलों के अध्यापकों द्वारा स्कूल टाइम के बाद व पहले बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का अवैध कारोबार विगत लंबे अंतराल से लगातार चल रहा है लेकिन आज तक ऐसा उदाहरण सुनने व देखने को नहीं मिल रहा है कि कहीं पर विभाग द्वारा इस गैर-कानूनी गोरखधंधे को अंजाम देने वाले शिक्षकों के खिलाफ कभी कार्रवाई अमल में लाई गई हो।

 

बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि स्कूल टाइम में कुछ शिक्षक बच्चों को पढ़ाने में इसलिए रुचि नहीं लेते कि परीक्षाओं के समय वही उन बच्चों के तारनहार बनेंगे। स्कूलों में ही यदि बच्चों की पढ़ाई पर अध्यापक विशेष ध्यान दें तो नि:संदेह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। कुछ अध्यापकों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है लेकिन विभाग की अफसरशाही द्वारा आज तक इस विषय पर मंथन ही नहीं किया गया कि आखिर सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने के पीछे कौन-सा कारण है।