यहां गाय का दूध गिरने से निकला था बावड़ी का पानी

punjabkesari.in Sunday, Aug 07, 2016 - 05:14 PM (IST)

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी स्थित शांघड़ के समीप पटाहरा बावड़ी का अपना ही विशेष महत्व है। इस बावड़ी के पानी से जहां शंगचूल महादेव की हर रोज पूजा होती है, वहीं कनौन के आराध्य देवता ब्रह्मालक्ष्मी और शैंशर के मनु ऋषि सहित घाटी के आधा दर्जन देवी-देवताओं का यहां गाडुआ लगता है। घाटी में किसी भी देवी-देवता के नए रथ के निर्माण व शाही स्नान आदि के लिए इस बावड़ी के पास पहुंचकर जलाभिषेक किया जाता है।

 

मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व पटाहरा गांव में ब्राह्मण परिवार में एक बुजुर्ग महिला थी। वह देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखती थी तथा हर रोज गांव से कई किलोमीटर दूर पानी के लिए जाती थी जिस कारण उसे घर पहुंचने में काफी समय लग जाता था लेकिन एक दिन उसके घर में चोरी हो गई जिससे वह काफी परेशान हो गई। उसने देवी-देवताओं से मन्नत मांगी कि यदि गांव के पास ही एक बावड़ी होती तो उसे इतनी दूर नहीं जाना पड़ता। बुजुर्ग महिला की मन्नत को देवी-देवताओं ने पूरा कर दिया।

 

रात को स्वप्न में बुजुर्ग महिला को एक ऋषि के भेष में एक व्यक्ति मिला। उसने बुजुर्ग महिला को कहा कि सुबह के समय तेरी गाय जहां भी दूध फैंकेगी वहां पर तुरंत कुदाली से खुदाई कर देना, ऐसा करने से पानी निकल आएगा। सुबह होते ही बुजुर्ग महिला ने वैसा ही किया। दैवीय चमत्कार के कारण बुजुर्ग महिला की गाय अपने आप उस जगह पर गई और दूध गिराने लगी जिस पर बुजुर्ग महिला ने तुरंत उस स्थान पर खोदना शुरू कर दिया और अचानक बावड़ी में पानी आ गया। तब से लेकर आज तक इस बावड़ी के पानी को गुणकारी माना जाता है।

 

सदियों से यहां अद्भुत देव परंपरा का निर्वहन किया जाता रहा है। जब भी देवता का गूर और पुजारी मर जाता है तो उसके मरने के बाद इस बावड़ी में पत्थर की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। जनश्रुति के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता है कि गूर-पुजारी को भी देवत्व प्राप्त होता है। कई बार हारियान क्षेत्र में सूखा और भारी बारिश के कारण त्राहि-त्राहि मच जाती है तो इसके निवारण लिए देवी-देवता हारियानों सहित यहां पहुंचते हैं।

 

शंगचूल महादेव शांघड़ के पुजारी मनोज शर्मा ने बताया कि शंगचूल महादेव की पूजा के लिए पटाहरा बावड़ी से हर रोज पानी ले जाया जाता है। इस बावड़ी में कोई भी व्यक्ति जूते पहन कर नहीं जा सकता है, ऐसा करने पर देव दंड मिलता है। इस जल को पवित्र माना जाता है इसलिए घाटी के दर्जनों देवी-देवताओं के कारदार झारी में जल डालकर ले जाते हंै तथा जलाभिषेक करते हैं। इस बावड़ी को पवित्र रखने के लिए विशेष ध्यान रखा जाता है। इस जल को दूषित करने पर बावड़ी का पानी सूख जाता है।


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