शिक्षा विभाग में लाखों का घोटाला, मॉडल स्कूलों को 2 से 3 गुना दामों पर स्पलाई कर दिया सामान

punjabkesari.in Tuesday, Mar 06, 2018 - 10:43 PM (IST)

नाहन: एक तरफ सरकारें जहां आम लोगों को उपभोक्ता कानूनों बारे जागरूक कर रही हैं वहीं खुद सरकार के शिक्षा विभाग में स्कूलों में सामान प्रिंट रेट से अधिक दामों पर सप्लाई कर लाखों रुपए के घोटाले का मामला सामने आया है, ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या सरकार को सरकारी कार्यालयों व स्कूलों तक यह जागरूकता नहीं पहुंचाई गई। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला के 10 मॉडल स्कूलों को जो सामान सप्लाई किया गया है वह 2 से 3 गुना अधिक दामों पर सप्लाई किया गया है। कुछ सामान में प्रिंट रेट अंकित है तो कुछ में नहीं। जिस सामान पर प्रिंट रेट अंकित भी है, उसके बावजूद भी वह सामान 2 गुना दामों पर है। 

बैडमिंटन रैकेट का दाम 1000 रुपए 
उदाहरण के लिए बैडमिंटन रैकेट के ऊपर 580 रुपए दाम अंकित है लेकिन बिल में 1000 रुपए दाम लिखा गया है, ऐसे में साफ होता है कि इस दौरान लाखों रुपए का घोटाला किया गया है। कुछ स्कूलों द्वारा तो सामान की एवज में भुगतान किए जाने की भी जानकारी मिली है। मामला उच्च शिक्षा उपनिदेशक सिरमौर के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है। फिलहाल जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि कितने लाख का घोटाला किए जाने की तैयारी थी, ऐसे में यहां सवाल उठता है कि जब शुरूआत में ही मॉडल स्कूलों में यह हाल है तो क्या भविष्य में स्कूलों में बच्चों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी और क्या सरकार द्वारा बनाई गई योजना का पूरा लाभ छात्रों तक पहुंचेगा। 

शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए 10 स्कूल बनाए गए थे मॉडल 
करीब एक साल पहले सरकार द्वारा शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए जिला के 10 स्कूलों को मॉडल स्कूल बनाया गया था। जिसमें हर विधानसभा क्षेत्र से 2 स्कूलों को चुना गया था। जिसमें नाहन से ब्वायज शमशेर स्कूल, त्रिलोकपुर स्कूल, पांवटा साहिब से कन्या स्कूल, अंबोया स्कूल, शिलाई से सतौन व शिलाई, पच्छाद से राजगढ़ व नारग तथा श्री रेणुका जी से संगड़ाह व भवाई को चुना गया था। इन स्कूलों में सरकार द्वारा छात्रों के लिए शिक्षा व खेलों संबंधित विशेष सुविधा उपलब्ध करवाने की कवायद शुरू की गई थी। जिसके लिए सरकार द्वारा अलग से लाखों रुपए बजट भी उपलब्ध करवाया गया था। 

42 लाख रुपए तय था बजट
शिक्षा विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 मॉडल स्कूलों के लिए सरकार द्वारा अलग से 42 लाख रुपए बजट उपलब्ध करवाया गया था। जिसमें से पहली किस्त के तहत 21.50 लाख रुपए जारी हो चुके हैं। जिसके तहत इन स्कूलों में खेलों व अन्य सुविधाओं के लिए सामान उपलब्ध करवाने के निर्देश संबंधित प्रबंधकों को दिए गए थे। जिसके लिए कमेटी भी बनाई गई थी। सामान पूरा हो जाने के बाद दूसरी किस्त भी जारी होनी थी लेकिन इसके लिए 31 मार्च, 2018 तक उपरोक्त सभी 10 स्कूलों में सामान उपलब्ध करवाने का टारगेट रखा गया था। हालांकि इससे पहले जिला में कंडियारी स्कूल को पहले ही मॉडल स्कूल का दर्जा दिया जा चुका है। 

न शोरूम न ही कोई फर्म
विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नियमों को ताक पर रखकर सभी स्कूलों में एक ही सप्लायर द्वारा सामान सप्लाई किया गया। इसके लिए न तो अलग से कोई ओपन टैंडर प्रक्रिया को अंजाम दिया गया और न ही अन्यों से रेट मांगे गए। जिसके चलते सप्लायर द्वारा मनमाने दामों पर सामान सप्लाई किया गया। सूत्रों की मानें तो जिस सप्लायर द्वारा सामान सप्लाई किया गया है न तो उसका कोई अपना शोरूम है और न ही कोई फर्म। इसके बाद जी.एस.टी. आदि भी न काटे जाने पर संशय है। 

जरूरत के हिसाब से नहीं मंगवाया सामान
जो मॉडल स्कूल बनाए गए उनमें पहले से भी कुछ सुविधाएं उपलब्ध थीं। ऐसे में जो सुविधाएं व सामान उनके पास उपलब्ध है, उसे भी उनके पास भेज दिया गया। उदाहरण के लिए कुछ स्कूलों में टेबल टैनिस के टेबल उपलब्ध हैं, बावजूद इसके अलग से टेबल भेज दिए गए। बास्केटबाल के पोल उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी भेज दिए गए। जिसके बाद सामान का दुरुपयोग हुआ है। संबंधित प्रबंधनों को चाहिए था कि जो सामान उपलब्ध नहीं है, उस सामान को ही भेजा जाता और जो पैसा बचता उससे अन्य सुविधाओं के लिए सामान जुटाया जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, मात्र औपचारिकताएं ही पूरी करने की कोशिश की गई है। 

कई स्कूल प्रबंधनों ने नहीं उठाया सामान  
सूत्रों की मानें तो कई स्कूल प्रबंधनों द्वारा न तो सही से सामान की सूची जांची गई और न ही सामान। इसके बाद पेमैंट हो गई। हालांकि कुछ स्कूलों में शिक्षकों ने सामान लेने से इंकार भी किए जाने की जानकारी मिली है, क्योंकि लिस्ट में दाम अधिक थे और जो सामान उपलब्ध करवाया जा रहा है उसकी गुणवत्ता भी सही नहीं थी।


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