चुनावी बयार में सिर चढ़कर बोला हिमाचली टोपियों का खुमार

punjabkesari.in Saturday, Dec 09, 2017 - 12:15 AM (IST)

पालमपुर: चुनावी बयार में सिर चढ़कर बोला हिमाचली टोपियों का खुमार। हिमाचल में राजनीतिक रंग में रंग चुकी हिमाचली टोपी की खूब मांग रही। चुनावी सीजन में लाखों रुपए की टोपियां धड़ाधड़ बिकीं। हरी व मैरून टोपियों को चुनावी सीजन में खरीदे जाने को प्राथमिकता मिली। प्रदेश के सियासी गलियारों में टोपी भी सियासत के रंग में रंग चुकी है। देश-विदेश में हिमाचल की पहचान यह टोपी सरकारों के साथ अपना रंग बदलती रही है। हिमाचलियों के सिर का ताज कहे जाने वाली टोपी सत्ता परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती है। वर्ष 1977 में प्रदेश में पहली बार गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ और शांता कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनके सिर पर धारीदार कुल्लवी टोपी पहचान बनी। शांता कुमार जहां भी गए, टोपी को ख्याति मिलती रही। शांता कुमार के समर्थक भी इसी टोपी के रंग में रंगते चले गए। 

बुशहरी टोपी बनी कांग्रेस की पहचान
वर्ष 1977 से 1990 तक जब तक शांता कुमार प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे तब तक इस टोपी ने प्रदेश में अपना वर्चस्व बनाए रखा। फिर दौर आया बुशहरी टोपी का। वर्ष 1984 में वीरभद्र सिंह पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उनके सिर पर हरे रंग की बुशहरी टोपी हुआ करती थी। समय के साथ यही टोपी कांग्रेस की पहचान बन गई। कांग्रेस के पदाधिकारी, कार्यकर्ता तथा मंत्री इसी रंग की टोपी में रंग कर रह गए। 1998 में प्रेम कुमार धूमल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब से मैरून रंग की कुल्लवी टोपी ने अपनी पहचान बनाई। यह टोपी भाजपा के रंग में रंगना आरंभ हुई तथा आज तक इसी रंग में रंगी हुई है। भाजपा के कार्यकत्र्ता व पदाधिकारी भी इसी रंग की टोपी को पहनने को प्राथमिकता देते आ रहे हैं।

पालमपुर में बिकीं 3 लाख की टोपियां
अकेले पालमपुर में ही लगभग 3 लाख रुपए की टोपियां कुछ ही दिनों में खरीदी गईं। भुट्टी वीवर्ज के पालमपुर शोरूम में चुनावी सीजन के दौरान लगभग 83,000 रुपए की टोपियां बिकीं तो बड़ाग्रां के शोरूम में 85,000 रुपए की टोपियों की बिक्री हुई। हिमाचल हैंडलूम में भी प्रतिदिन 10 से 15 टोपियां बिकती रहीं तो यही स्थिति हिम बुनकर तथा धौलाधार तथा दुर्गा हैंडलूम के शोरूम की रही।


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