इस मंदिर में जिसने शीश नही झुकाया वह वापस नहीं लौटा

punjabkesari.in Saturday, Sep 23, 2017 - 02:47 PM (IST)

शिमला: देवभूमि हिमाचल करोड़ों देवी-देवताओं के वास के लिए प्रसिद्ध है, यही वजह है कि पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के लोगों की यहां के मंदिरों में गहरी आस्था है। तरंण्डा देवी का यह मंदिर हिमाचल के किन्‍नौर जिले के एनएच-5 के किनारे स्थित है। रामपुर से करीब 40 किमी दूर इस मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। 1962 में भारत का चीन से युद्घ हुआ। युद्घ खत्म होने पर सेना ने यहां के रास्ते से रोड बनाने की सोची ताकि बॉर्डर तक सेना को गोला बारूद और अन्य सामान पहुंचाया जा सके। पहले रोड सिर्फ रामपुर तक ही था। बताया जा रहा है कि 1963 में सेना के GREF विंग ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया। यहां तक जब पहुंचे तो रोड आगे बनाना बहुत मुश्किल हो गया।
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माथा टेके बिना कोई यहां से नहीं जाता
दरअसल, अाए दिन रोज चट्टानें गिरने से किसी न किसी मजदूर की मौत हो जाती।वहीं दूसरी ओर सेना के लोग भी काफी परेशान हो गए। इस बीच तरंण्डा गांव के लोग गांव में बने मंदिर मां चंद्रलेखा के पास पहुंचे। देवी ने बताया कि यहां पर किसी शक्ति का प्रकोप है। मैं इस जगह स्‍थापित होना चाहती हूं। यहां मेरे नाम से मंदिर बनाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा फिर सेना के लोगों ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया और फिर सब कुछ ठीक हो गया। 1965 में मां का मंदिर यहां स्‍थापित कर दिया गया।  तरंण्डा मंदिर कमेटी के अध्यक्ष चंपे लाल नेगी ने बताया कि उन्हें भी बुजुर्गों से इस बारे में पता चला था। मंदिर की देखरेख अब सेना ही करती है। सेना के जवान ही यहां पूजा पाठ का काम संभालते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में माथा टेके बिना कोई यहां से नहीं जाता। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो वह कभी यहां से वापस नहीं जा पाता।
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