गिरि पेयजल प्रोजैक्ट घोटाला: कई अफसरों पर गिरेगी गाज

punjabkesari.in Thursday, Jun 22, 2017 - 09:12 AM (IST)

शिमला: राजधानी शिमला की बहुचर्चित गिरी नदी पेयजल योजना में हुए कथित घोटाले को लेकर कई अफसरों पर गाज गिरनी तय है। इस सिलसिले में स्टेट विजीलैंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो ने शिमला में एफ.आई.आर. दर्ज की है। यह एफ.आई.आर. हिल कंस्ट्रक्शन एंड इंजीनियरिंग कंपनी और आई.पी.एच. के अधिकारियों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 420 (फ्रॉड), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र रचना), भ्रष्टाचार रोकथाम कानून की धारा 13(2), 13 (1 )बी. के तहत दर्ज हुई है। आरोपों के मुताबिक 9 साल में तकरीबन 200 करोड़ रुपए का पानी बर्बाद हुआ।  इस प्रोजैक्ट से पानी की सप्लाई शिमला के लिए होती है। इस प्रोजैक्ट की लागत करीब 75 करोड़ आई, जबकि मुरम्मत पर ही 55 करोड़ रुपए फूंके गए।  


कम मोटाई वाली घटिया स्तर की पाइपों का इस्तेमाल किया गया
आरोप है कि इसमें कम मोटाई वाली घटिया स्तर की पाइपों का इस्तेमाल किया गया। प्रोजैक्ट वर्ष 2007 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तैयार किया था। इसके माध्यम से शिमला की जनता की प्यास बुझाई जानी थी, लेकिन गिरि नदी से लेकर करीब 1000 मीटर के दायरे में जो भी पाइपें बिछाई गईं, इनकी मोटाई टैंडर स्पैसिफिकेशन से काफी कम रही। वर्ष 2008 में भाजपा सत्ता में आई। प्रोजैक्ट ट्रायल में ही हांफ गया। पाइपों में लीकेज रोकने के नाम पर करीब 55 करोड़ रुपए टांके लगाने में ही खर्च हुए। फिर भी रोजाना 80 लाख से 1 करोड़ लीटर तक रोजाना पानी की लीकेज होती रही। शिमला तक पानी लिफ्ट करने में सरकार का एक हजार लीटर पानी पहुंचाने में 80 रुपए का खर्च आता है। 


पानी का पूरा जिम्मा सरकार ने निगम को दिया
शिमला में पीलिया फैलने से 20 से अधिक मौतों के बाद अश्विनी खड्ड की स्कीम बंद कर दी। इससे नगर निगम का ध्यान गिरि की तरफ गया। इसके लीकेज रोकने के प्रयास हुए। इस बीच पानी का पूरा जिम्मा सरकार ने निगम को दिया। इसके लिए अलग से ग्रेटर शिमला पेयजल एवं सीवरेज सर्कल बनाया गया। इसके माध्यम से गिरि प्रोजैक्ट की लीकेज का पता लगाया गया। इसके एस.ई. ने निगम को जो रिपोर्ट थमाई, उससे निगम के तत्कालीन मेयर संजय चौहान और डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर का माथा ठनका। चौहान ने इसे लेकर सरकार को पत्र लिखा और पूरे घोटाले की विजीलैंस जांच मांगी।


राज्यपाल ने दिए थे जांच के आदेश
तत्कालीन मेयर संजय चौहान के पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उधर, 3 महीने पूर्व एक अन्य शिकायतकत्र्ता ने राज्यपाल से शिकायत की। उन्होंने सरकार को भी पत्र लिखा था। सरकार की बजाय राजभवन ने विजीलैंस जांच के आदेश दिए। इसके लिए जांच एजैंसी ने इंस्पैक्टर भूपिंद्र सिंह को प्रारम्भिक तफ्तीश सौंपी। उन्होंने मौके का मुआयना किया। मौके से पाइपों के सैंपल एकत्र किए। इसकी टैक्रीकल असैसमैंट करवाई। जांच से खुलासा हुआ कि पाइपों की मोटाई कम थी और इनका स्तर भी घटिया रहा। इन पाइपों में एन्ग्रेब्ड मार्क नहीं था। उधर, निगम चुनाव से ऐन पूर्व तत्कालीन मेयर और डिप्टी मेयर ने भी मौके का दौरा किया।


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